गतांक से आगे...
पायोनियर ग्रुप के चेअरमेन डॉ. पी.के. जैन ने खुले सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि पहले हम संवेदनाओं को आपस में मिल बैठकर शेअर करते थे। आज की तारीख में संवेदनाएं भी टेक्नॉलॉजी से चलती हैं। आरती करना हो तो लैपटॉप निकाल कर चालू कर दिया जाता है बोलो कौनसी आरती चाहिए, कौनसी ट्यून में चाहिए सब कुछ उपलब्ध है। इसमें कहीं भी संवेदना नहीं है क्योंकि संवेदनाओं को टेक्नॉलॉजी ने लील लिया है और वर्तमान में टेक्नॉलॉजी अथाह है। इसे एक उदाहरण से समझाता हूं। जब मैं सीए की प्रेक्टिस करता था तब मुझे कम से कम 2 हजार टेलीफोन नंबर याद थे आज की तारीख में स्थिति यह है कि मुझे चार नंबर भी याद नहीं हैं क्योंकि मुझे मालूम है कि मोबाइल पर नंबर देख लेंगे। क्या हमारा ध्यान इस ओर नहीं है कि हम जब तक ब्रेन का उपयोग नहीं करेंगे, ब्रेन काम करेगा ही नहीं। हम टेक्नॉलॉजी पर इतने अधिक निर्भर होते जाएंगे तो हमारा क्या हाल होगा। एक लघु कथा के माध्यम से इस बात को समझाता हूं। एक व्यक्ति के दो बेटे थे, दोनों बहुत होशियार थे। पिता ने एक बेटे से पूछा कि बेटा जिंदगी में क्या करना चाहते हो? बेटे ने कहा कि पिताजी मैं तो ऐसी टेक्नालाजी तैयार करना चाहता हूं कि एक स्विच दबाऊं और मेरे सारे काम हो जाएं। मुझे कुछ नहीं करना पड़े। पिता ने कहा- वेरी गुड, बहुत इंटेलीजेंट हो। पिता ने दूसरे बेटे से पूछा- बेटा तुम क्या करना चाहते हो। उसने कहा- मुझे स्विच भी नहीं दबाना पड़े, केवल मैं सोचूं और मेरा काम हो जाए, ऐसी टेक्नालाजी तैयार करना चाहता हूं। वर्तमान में यही स्थिति आ गई है। आज आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस इस स्तर पर पहुंच चुका है कि आप सोचो और सब काम हो जाएगा लेकिन संवेदनाएं टेक्नालाजी में ट्रांसफर नहीं हो सकती हैं। अगर हम टेक्नालाजी पर इतने ज्यादा निर्भर हैं तो यह मान कर चलिए कि मानवता और संवेदनाएं तो पूरी तरह खत्म ही हो जाएंगी। सिर्फ टेक्नालाजी ही चलेगी तो जिंदगी ही आर्टिफिशियल हो जाएगी। टेक्नालाजी ने आपको रिप्लेस कर दिया तो आपका खुद का तो कुछ अस्तित्व रहेगा ही नहीं। जब यह स्थिति निर्मित होगी तब परिवार नामक इकाई का क्या होगा? संवेदनाएं, एक-दूसरे के प्रति स्नेह, एक-दूसरे के सुख-दु:ख में शामिल होने जैसी बातें सब कुछ बदल जाएगा। क्या इसे ही हम सुखी और सुकुन भरा जीवन कहेंगे? टेक्नालाजी जरूरी है लेकिन किस सीमा तक यह हमें ही सोचना पड़ेगा।