शिक्षा की बात-सबके साथ (3)
डॉॅ. प्रमोद कुमार जैन
चेअरमेन, पायोनियर ग्रुप
तथा
चीफ एडिटर
राष्ट्रीय पायोनियर प्राइड
गतांक से आगे...
अब मैं आपसे चर्चा करना चाहूंगा कि शिक्षा जो वर्तमान में है वह कैसे हो रही है। मैं बिंदुवार अपनी बात रखना चाहूंगा -
1- शिक्षा की शुरूआत होती है दो से तीन साल की उम्र के बच्चों के बीच। उस समय बच्चे से यह उम्मीद की जाती है कि वह पेन, पेंसिल पकड़ कर प्री नर्सरी या नर्सरी क्लास में कुछ लिखे। साइंटिफिक एंगल से देखें तो यह उम्र उंगली से पेन, पेंसिल पकड़ने की नहीं है क्योंकि इस समय में बच्चे का न्यूरो सेंसरी सिस्टम विकसित नहीं होता और यही कारण है कि आज 100 में से 99 लोगों की हैंडराइटिंग खराब है।
2- शिक्षा में करप्शन या भ्रष्टाचार जो भी है इसी स्टेज पर चालू हो जाता है। क्लास में बच्चे का हाथ पकड़ कर टीचर लिखती है और घर पर बच्चे का होमवर्क माता-पिता या भाई-बहन करते हैं। बच्चा अपने हाथ से कुछ कर नहीं पाता क्योंकि उसकी उम्र नहीं है और बच्चे को उपहार स्वरूप कभी फाइव स्टार, कभी थ्री स्टार, कभी आइसक्रीम इत्यादि से नवाजा जाता है। इसी स्टेज पर बच्चे के दिमाग में यह चीज रजिस्टर होना शुरू हो जाती है कि बिना कुछ किए उसे एप्रीसिएशन मिलता है। यह स्थिति धीरे-धीरे आगे बढ़ती है और पढ़ाई में गैप बढ़ता जाता है। नतीजा आठवीं क्लास के बच्चे को पांचवी क्लास तक भी नहीं आता और ग्रेजुएट लड़का बारहवीं के बराबर भी नहीं रहता।
3- नैतिक शिक्षा का पूर्णत: अभाव है। नतीजा, संस्कारहीन पढ़े-लिखे नौजवान तैयार हो रहे हैं जिनमें इंसानियत कम से कम पढ़ाई के कारण तो नहीं आ रही है।
4- स्वयं शिक्षा प्रणाली इस तरीके से बनाई गई है कि बिना ट्यूशन, बिना कोचिंग के आपको कहीं भी अच्छे प्रोफेशनल कोर्सेस में एडमिशन नहीं मिलता है चाहे आप किसी भी बोर्ड की एग्जाम में 100 प्रतिशत नंबर ले आएं क्योंकि जो आपने स्कूल एजुकेशन में पढ़ा उससे उनका सिलेक्शन क्राइटेरिया पूर्णत: भिन्न है। नतीजा आज स्कूली शिक्षा गौण होती जा रही है और कोचिंग क्लासेस फल-फूल रहे हैं।
5- अब बात आती है कॉलेज एजुकेशन की... जब बच्चा ग्रेजुएट होकर निकलता है तो वह एम्प्लॉएबल नहीं होता कारण उसकी शिक्षा किताबों तक सीमित है और वास्तविकता से, यथार्थ से कोसों दूर है। एक सिविल इंजीनियर यह केल्कुलेट नहीं कर पाता है कि एक टेबल में कितनी लकड़ी लगेगी। यह केल्कुलेट नहीं कर सकता कि एक मकान में कितनी ईंटें लगेंगी। लेकिन उसे उस विभाग की एक उच्च डिग्री हासिल है। एक डॉक्टर पेशेंट की जांच रिपोर्ट को नहीं पढ़ पाता, वह पैथॉलॉजी की रिपोर्ट पर निर्भर है जो उन्होंने लिख दिया डॉक्टर ने मान लिया। तीन-चार रिपोर्टों का अध्ययन करके किसी नतीजे पर एक डॉक्टर नहीं पहुंच पाता है। सिर्फ उसे यह मालूम है कि यह वेल्युज कम हैं और यह ज्यादा। ऐसा क्यों है, इनका दूसरी वैल्यूज पर क्या असर होगा, अधिकतर केसों में यह पाया गया है कि डॉक्टर अनभिज्ञ है।
6- एक और बात कहना चाहूंगा कि टेक्नॉलॉजी के विकास के कारण, रिसर्च एंड डेवलपमेंट के कारण नए-नए टूल्स, टेस्ट, इक्विपमेंट इत्यादि डेवलप हुए लेकिन उनके अपडेशन के लिए कोई भी व्यवस्था पहले से पास आऊट प्रोफेशनल्स को न होने के कारण कम्प्यूटर में उपलब्ध प्री फीडेड इन्फॉर्मेशन के आधार पर निर्णय लिया जाता है। नतीजा अधिकतर केसेस में गलत होता है। (क्रमश:)