पार्टी मतलब एंन्जॉय...एंन्जॉए मतलब नशा

इंदौर। संस्कार...संस्कृति...सरोकारविहीन सोच का सामना जब काल से होता है तब सब कुछ एकाएक जमीन पर पटक कर सच्चाई बताने जैसा होता है...काल अपने साथा मातम लाता है जिसके साथ दु:ख की ग्यारंटी होती है। शहर में शराब पीकर वाहन चलाना आम बात होती जा रही है पर पार्टी के नाम पर एन्जॉय और एन्जॉय का मतलब नशा ही हो गया है। 
अपनी सफलता-असफलता पर शहर के युवा इन दिनों शराब की दुकानों के अहातों की ओर दौड़ लगाने लगते हैं। ऐसे अहाते जिनमें वे एन्जॉय ढूंढते हैं। अहाता जिन्हें ठीक नहीं लगता वे कमरों की तलाश में रहते हैं जहां पर बैठकर शराब पी जाए और तब भी बात नहीं बने तो किसी मित्र की गाड़ी में लांग ड्राइव पर जाते हैं और गाड़ी में ही शराब पीते हैैं। गत कुछ दिनों में शहर से बाहर जा रही या आ रही युवाओं की टोलियों ने केवल शराब के कारण अपनी जान गंवाई है। शराब के नशे में कब एक्सिलेटर पर पैर ज्यादा तेज हो जाता है इसका अंदाज ही नहीं लग पाता है और एक्सीडेंट में युवाओं की दर्दनाक मौत हो जाती है।
क्या कारण है कि पार्टी का मतलब शराब ही पीना है, क्या युवा एडवेंचर की तलाश में शराब पी रहे हैं और कुछ नया करने के चक्कर में कार के भीतर शराब पीने से लेकर हुक्का तक गुड़गुड़ा रहे हैं। पिछले वर्ष शहर के विजय नगर क्षेत्र से हरदा रवाना हुए बारातियों की स्कॉर्पियों में युवा बैठे थे, सभी ने गाड़ी में ही शराब पी। 100 कि.मी. प्रतिघंटा की गति से गाड़ी जा रही थी और अचानक ऊछल कर पेड़ से टकरा गई। गाड़ी में बैठे 6 लोगों की मौत हो गई। इसके पूर्व एबी रोड पर राऊ के नजदीक भी सुबह के समय पांच दोस्तों की मौत शराब के कारण ही हुई थी।
अलग तरह की संस्कृति पनप रही है
शहर के युवाओं में एक अलग ही तरह की संस्कृति पनप रही है जिसे मेरी मर्जी संस्कृति कह सकते हैं। वे शराब पीते हैं और पूछने पर कहते हैं अपने पैसे से पी रहे हैं...पर जब इस प्रकार की दुर्घटनाओं में मौत हो जाती है तब उनके अपनों पर क्या बीतती है यह वे ही जान सकते हैं। शहर में लगातार नशे का व्यापार बढ़ता ही जा रहा है। महंगी शराब के नाम पर इंसेस वाली शराब को कबाड़ से खरीदी बोतलों में होम डिलेवरी करने की बात हो या फिर लगातार पकड़े जाने वाले हुक्का बार हों या फिर गांजे या अफीम की खेप पहुंचाने वाले लोग हों। शहर के पबों में देर रात तक शराबखोरी चलती है और फिर जो हंगामा सड़कों पर होता है वह किसी से भी छिपा नहीं है। शराब और अन्य नशे के आदि होते युवाओं में कई प्रतिष्ठित परिवारों के युवा भी होते हैं जो दिखावे की संस्कृति में तथा कहां पैसा खर्च करें इस समस्या से पीडित होते हैं। परिवार वालों को इन युवाओं को समझने का वक्त नहीं है लिहाजा ये नशे को ही अपना साथी बना रहे हैं। हुक्का बार या नशे के इन अड्डों पर कार्रवाई होती भी है तब पुलिस अधिकारियों के पास प्रतिष्ठित परिवारों के होनहारों को बचाने के लिए फोन आने लगते हैं। यहां बात केवल लॉ एंड आॅर्डर की नहीं बल्कि युवाओं के ऐसे समूहों की है जो लगातार शराबखोरी और नशे के व्यापार में लिप्त हैं। इनमें से कई जल्द पैसा कमाने के चक्कर में इस धंधे में आ जाते हैं। 
क्या समाज अपनी जिम्मेदारी से बच रहा है?
शहर में स्वच्छता अभियान को जनसमर्थन अच्छा मिला। केवल सरकारी संस्थाओं या संगठनों ने इसे खानापूर्ति करने के लिए नहीं अपनाया बल्कि आम जनता ने और समाज के विभिन्न वर्गों ने अपने कार्यक्रमों में इसे अपनाया तथा अन्य लोगो को अपनाने के लिए प्रेरित भी किया है। जब इंदौर स्वच्छता अभियान को लेकर अपनी जिम्मेदारी निभा सकता है तो अपने युवाओं को रास्ते पर लाने के लिए प्रयास क्यों नहीं कर सकता? विभिन्न समाजों में शराब और नशे के खिलाफ आवाज बुलंद करना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि माता-पिता को अपने पुत्र या पुत्री से संवाद बढ़ाने की जरूरत है। पार्टी मतलब केवल शराबखोरी करना इस संस्कृति को हटाने की जरूरत भी अब शिद्दत के साथ महसूस होने लगी है।
लगातार चलती रहे कार्रवाई
इंदौर पुलिस ने शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों के खिलाफ एकाएक अभियान चलाया जरूर पर वह केवल दिखावे के लिए...असल में पुलिस को लगातार कार्रवाई करनी होगी। जो भी अहाते में शराब पीने जाता है वह शराब पीकर ही वापस घर जाएगा। ऐसे में रोजाना हजारों की संख्या में मोटरसाईकल से लेकर कार चलाने वाले शराबी सड़कों पर रोजाना घूमते हैं। फिर पुलिस इन लोगों को सख्ती से क्यों नहीं पकड़ती? केवल दिखावे के लिए वार त्यौहार पर सख्ती दिखाने के काम नहीं बनने वाला। अगले कुछ दिनों में होली और रंगपंचमी का त्यौहार आने वाला है उन दिनों में भी शहर में शराबखोरी बढ़ जाती है जिसका परिणाम अपराधों पर भी नजर आता है।