इंदौर। इंदौर शहर यदि अस्तित्व में है तो केवल नर्मदा के कारण... यहां तो बिन नर्मदा सब सून है। नर्मदा के अलावा शहर में पानी का ऐसा कोई अन्य स्रोत नहीं है जिससे हर दिन पूरे शहर की प्यास बुझ सके। सोमवार को नगर निगम ने 180 एमएलडी अतिरिक्त पानी की सौगात दी। यह पानी नर्मदा के तीसरे चरण से मिलेगा। एक बार फिर दावा किया जा रहा है कि शहर की जलापूर्ति में सुधार होगा और लोगों को पर्याप्त पानी मिलने लगेगा। हालांकि आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा कि कितना फर्क पड़ा है लेकिन आम लोगों का कहना है कि पिछले अनुभव यही बताते हैं कि अतिरिक्त पानी मिलने के बाद भी शहर की प्यास बुझने वाली नहीं है।
नर्मदा का पानी है तो इंदौर शहर भी जीवित है अन्यथा यहां जीवन जीना मुश्किलों से भरा हो सकता है क्योंकि शहर के पास नर्मदा के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है। होलकर शासनकाल में बने तालाबों के बाद जनता द्वारा निर्वाचित सरकारों ने शहर के लिए कोई नया तालाब तो नहीं बनवाया बल्कि जितने तालाब थे उनमें से भी कई तो अब गायब हो चुके हैं। नर्मदा का पानी आया तो शहर होलकरकालीन बावड़ियों को भुला बैठा। उन्हें कचरा घर बना कर बंद कर दिया। कुएं तो लगभग गायब ही हो चुके हैं। केवल नर्मदा के पानी भरोसे शहर विकास की डगर पर है।
सबसे महंगा पानी इंदौर में
पूरे प्रदेश में सबसे महंगा पानी इंदौर को मिल रहा है। नर्मदा से पंपों के जरिए पानी पहाड़ के शीर्ष पर पहुंचाया जाता है और फिर वहां से पाइपों के जरिए पानी इंदौर की टंकियों तक पहुंचता है। इन पंपों के संचालन के लिए हर माह लाखों रुपए का बिजली का मिल नगर निगम को चुकाना पड़ता है। पाइप लाइनों, पंपों व इंटेकवेल के रखरखाव, जल शुद्धिकरण, वितरण आदि का खर्च अलग है। यह पानी कितना महंगा है और कितनी मुश्किलों के बाद इंदौर तक पहुंच रहा है इसकी संपूर्ण जानकारी अधिकांश लोगों को नहीं है। नर्मदा के तीन चरणों के बाद भी शहर को कभी इतना पानी नहीं मिल पाया कि पूरी तरह प्यास बुझ सके। बारह महीने लोग जलसंकट की बात करते नजर आते हैं। पूरे शहर में लाखों की संख्या में ट्यूबवेल खुद चुके हैं। भू जलस्तर काफी नीचे जा चुका है और प्रतिबंध के बावजूद ट्यूबवेल खादे जा रहे हैं।
चौबीस घंटे पानी देने के वादे का क्या हुआ
करीब 6 साल पहले जब नर्मदा के तीसरे चरण की शुरूआत हुई थी तब कहा गया था कि चुनिंदा कॉलोनियों में चौबीस घंटे पानी मिलेगा। वहां मीटर लगाए जाएंगे। इसके बाद अन्य कॉलोनियों में भी इस प्रक्रिया को लागू किया जाएगा। पहले चरण में जिन कॉलोनियों का चयन किया गया था उनके रहवासी अब तक राह देख रहे हैं कि कब वो घड़ी आएगी जब चौबीस घंटे पानी मिलेगा। अब तृतीय चरण से 180 एमएलडी पानी अतिरिक्त के साथ ही एक बार फिर दावा किया जा रहा है कि लोगों को पर्याप्त पानी मिलेगा, अधिक दबाव से पानी आएगा और देरी तक नलों में पानी चालू रहेगा। यह निगम प्रशासन का दावा है लेकिन लोगों का कहना है कि पुराने अनुभव के आधार पर तो यही कहा जा सकता है कि कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।
क्यों नहीं मिलता पर्याप्त पानी
शहर में सभी लोगों को पर्याप्त पानी मिलना अब असंभव हो गया है क्योंकि शहर चारों दिशाओं में काफी फैल चुका है और पानी वितरण का प्रबंधन उस अनुरूप नहीं है। किसी क्षेत्र में कम तो किसी क्षेत्र में अधिक समय तक पानी दिया जाता है। कहीं-कहीं दो दिनों में एक बार नर्मदा का पानी दिया जाता है और शेष समय सरकारी ट्यूबवेल (यदि चालू हो तो) उससे पानी मिलता है। यह बात भी साबित हो चुकी है कि जितना पानी जलूद स्थित पंपिंग स्टेशनों से इंदौर तक पहुंचने का दावा किया जाता है उतना पानी यहां तक पहुंचता नहीं है। शहर की परिधि पर स्थित कॉलोनियों और बहुमंजिला भवनों तक नर्मदा की लाइन अब तक नहीं पहुंची है। वहां ट्यूबवेल चालू रहने तक उससे काम चलाया जाता है और बाकी समय हर दिन टैंकरों से पानी खरीदना पड़ रहा है। शहर तो तेजी से बढ़ता जा रहा है लेकिन उसकी आवश्यकता के अनुसार अतिरिक्त पानी कहां से लाया जाएगा इस बारे में कोई चर्चा नहीं करता।
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