सानंद पुरस्कार वितरण समारोह एवं रंगकर्मी विजया मेहता की कार्यशाला अनुभव की ऊर्जा...सफलता का संतोष

 इंदौर। अनुभव के बोल प्रेरणा देते हैं व्यक्ति को आत्मविश्लेषण करने का मौका देते हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि संतोष और सफलता का आपस में कितना प्यारा संजोग है यह आसानी से समझ में आ जाता है। सानंद के कार्यक्रमों में वैसे बेहतरीन मैनेजमेंट का एहसास जरुर होता रहता है और यह पुरस्कार वितरण समारोह था जिसमें ख्यात रंगकर्मी निदेशक विजया मेहता स्वयं मौजूद थीं। सानंद जीवन गौरव पुरस्कार से वरिष्ठ अधिवक्ता एवं समाजसेवी अशोक चितळे को सम्मानित भी किया गया।विजया मेहता अपने आप में चलती-फिरती किताब हैं। वे रंगकर्म के हर रंग और मर्म को समझती हैं और करीब से जानती हैं। यही कारण रहा कि उन्होंने अपनी यादों में से इंदौर की यादों को भी टटोला और यह साफ कहा कि इंदौर की संस्कृति की समृद्धशाली परंपरा रही है, मैं इंदौर कई बार आई हूँ, नाटकों के सिलसिले में यहां पर हम रुकते थे। उन्होंने सानंद की तारीफ भी कि और यह भी कहा कि युवा अब इस परंपरा को आगे बढ़ाएं। वहीं अशोक चितले ने कहा कि अपने ध्येय को लेकर आगे बढ़ता रहा और कभी भी पुरस्कार की आशा नहीं की। जब भी सेवा का मौका मिला मैंने वह निभाया। इस अवसर नाट्य स्पर्धा के पुरस्कार वितरित भी किए गए। नाट्य भारती के नाटक सत्यदास को प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ वहीं रंगयोग के नाटक आस्थापना को द्वितीय व अविरत के नाटक पैसा झाला खोटा को तृतीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। जाल सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में सानंद के मानद सचिव जयंत भिसे ने अतिथियों का स्वागत किया। इसके अलावा श्री श्रीनिवास कुटुंबळे, स्मिता देशमुख, वृंदा कवठेकर, यश भालेराव, रेणुका पिंगळे ने भी अतिथि स्वागत किया। संचालन विश्वेश शिधोरे ने किया। नाट्य कार्यशालाख्यात रंगकर्मी विजया मेहता ने शहर के आलाप स्टुडियो में शहर के रंगकर्मियों के साथ दो सत्र बिताए और रंगकर्म से संबंधित अपने अनुभव साझा किए तथा कुछ टिप्स भी दिए।जब विक्रम गोखले ने बोला मैं यह किरदार नहीं कर सकताजासवंदी नामक मराठी नाटक था जिसमें विक्रम गोखले को लेने की मेरी इच्छा बिल्कुल भी नहीं थी क्योंकि वह किरदार उनके लायक था ही नहीं। मैंने विक्रम गोखले को यह बात बता भी दी थी क्योंकि उनकी इच्छा थी मेरे साथ काम करने की। जब नाटक को आकार दे रहे थे तब जहां पर नाट्य मंचन करना था उस संस्था न बोला कि हमें तो नाटक में विक्रम गोखले ही चाहिए। मैंने विक्रम को फोन किया कि मेरी इच्छा तुम्हें नाटक में लेने की बिल्कुल नहीं परंतु आयोजकों की ओर से दबाव है इस कारण ले रही हूँ तुम प्रैक्टिस के लिए आ जाना। जैसे ही विक्रम गोखले आए मैंने उनसे कहा कि तुम्हारा किरदार है कि तुम एक ऐसे पति का अभिनय कर रहे हो जिसकी पत्नी पागल हो चुकी है और उसे मानसिक चिकित्सालय में भर्ती करवाना है। इस मानसिकता के साथ मैंने विक्रम गोखले को एक बैंच पर पंद्रह मिनट बैठने के लिए बोल दिया। विक्रम गोखले पंद्रह मिनट बाद मेरे पास आया और बोला यह किरदार मैं नहीं कर पाऊंगा मैं इसके लिए फिट नहीं हूँ। तब मैंने कहा कि अब जाकर तुम इसके लिए फिट हो गए हो। कई प्रकार की एक्सरसाईज भी करवाईविजया मेहता ने बताया कि रंगकर्म में कई प्रकार की एक्सरसाईज होती है जिसमें सिचुएशन दी जाती है जैसे दो दोस्त हैं, दोनों एक ही लड़की से प्रेम करते हैं और लड़की ने एक से एक दिन पूर्व बोला है कि वह उससे शादी करेगी जबकि दूसरे लड़के से बोला है कि वह उससे भी शादी करेगी। अब दोनों लड़के अच्छे दोस्त हैं और दोनों को एक-दूसरे को यह बताना है। इस प्रकार की सिचुएशन में आप किस प्रकार का अभिनय करेंगे। इसके अलावा उन्होंने चार शब्द दिए नीला, धागा, आकाश और लॉकेट...इस पर तत्काल कथा बनाकर नाटक की प्रस्तुति देना होती है जिसमें इन चारों का मुख्य रुप से उपयोग हो। भक्ति बर्वे को डांट लगाईविजया मेहता ने बताया कि उन्होंने एक नाटक के दौरान भक्ति बर्वे को भी डांट लगाई थी। दरअसल भक्ति एक किरदार में डूब के रहना चाहती थी। वह जब भी मंच से पीछे आती एक कुर्सी पर बैठ जाती और जो भी आसपास आता उसे भगा देती थी। मैंने एक-दो बार देखा और फिर कहा कि भक्ति यह नाटक छोड़ो, इतना दिमाग पर लोड लेकर किरदार क्यों निभा रही हो? सबसे पहले कलाकार को पता होना चाहिए कि वह नाटक में काम कर रहा है इस कारण जैसे ही आप मंच से पीछे आओ तब सामान्य हो जाओ। विजया मेहता ने यह भी बताया कि नाना पाटेकर को जो भी किरदार दिया जाता है वह उस प्रकार के किरदार को ढूंढते हैं और उस पर नजर रखते हैं। अपनी मां से भी सीखाआपने कहा कि जब नाटक संध्याछाया किया तब मैं 28 वर्ष की थी और मुझे 60 वर्ष की महिला का किरदार निभाना था। अब मैंने अपनी मां की ओर देखा और जब मैं जर्मनी जा रही थी तब मां भी एयरपोर्ट पर छोड़ने के लिए आई थी। मां अकेली बैठी थी और मैं ढाई वर्ष के लिए बाहर जा रही थी तब मां से बात की तब मां खुश तो थी पर दु:खी भी थी क्योंकि ढाई वर्ष बाद मुलाकात होना थी। मां के चेहरे पर दोनों भाव थे जिसे मैंने पढ़ा और वैसा ही नाटक में अभिनय किया भी। उन्होंने यह भी बताया कि किस प्रकार से हम किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जिससे हम मिलना बिल्कुल नहीं चाहते और नफरत करते हैं। सभी नाटक करते हैंआपने बताया कि जीवन में कौन नाटक नहीं करता...सभी करते हैं। उन्होने छोटे बच्चे का उदाहरण दिया कि एक छोटा बच्चा है जिसके माता-पिता नौकरी पर जाते हैं, वह बच्चा अकेला है और अपने मित्र के आने का इंतजार कर रहा है। अब वह बैठे-बैठे क्या करता है स्वयं को एंगेज कर लेता है। पास ही की कोई भी वस्तु को गाड़ी बना लेता है और घर पर गाड़ी चलाते बैठता है तभी मित्र भी आता है तब उसे भी कहता है कि आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा दोनों घर भर में घूमते हैं। यह कल्पना है, यह कल्पना वह बच्चा कैसे कर लेता है यह बात महत्वपूर्ण है। दो दिवसीय इस कार्यशाला में शहर के 55 रंगकर्मियों ने भाग लि