इस शहर की तासीर को समझो...अपने शहर के प्रति लोगों की दीवानगी को समझो... डंडे के बल पर काबू करने वाले लोग प्यार से इन्हें समझाने का प्रयास तो करो...अनंत चतुर्दशी की झांकियां हर बार निकलती हैं और इस बार भी निकलीं। बड़ी धूमधाम के साथ और अपने संपूर्ण वैभव के साथ। यह हम इंदौरियों के लिए सार्वजनिक रुप से संपूर्ण परिवार के साथ बाहर निकलने और झांकियां निहारने का समय होता है। बच्चे हाथों में लकड़ी से बनी नन्हीं तलवारें और पुंगी बजाते हुए निकलते हैं,सतरंगी बल्बों की रोशनी में इंदौरियत के उत्सव को मनाते हैं। इस बार भी रेकार्ड तोड़ इंदौरी पहुंचे झांकियां देखने और आनंद उठाने इंदौरियत के उत्सव का परंतु क्या प्रशासन को संपूर्ण आयोजन को लेकर एक बार गंभीर विचार-विमर्श नहीं करना चाहिए था? क्या कोई भी अनुभवी अधिकारी प्रशासन के पास नहीं था जो जिम्मेदार अधिकारियों को समझाए कि शहर में बिना ट्रैफिक जाम लगाए भी झांकियां निकली हैं। जरुरी नहीं कि दोपहर बाद से संपूर्ण मध्यक्षेत्र?की सड़कों को ही बंद कर दिया जाए। शाम से रात तक शहर के बाशिंदे ऐसी सड़कों पर जाम में फंसे रहे जहां पर दोपहिया वाहनों की दो लेन ही बड़ी मुश्किल से निकल पाती है परंतु वहां पर मजबूरी में चार पहिया वाहन निकाले जा रहे थे परिणाम ट्रैफिक जाम होता रहा। शहर के पूर्वी क्षेत्र से मध्यक्षेत्र की ओर आने वाले सभी रास्ते बंद कर दिए गए। मजबूरन लोगों को एमआर टेन का लंबा रास्ता अपनाना पड़ा वह भी दोपहर बाद से ही। एमआर 4 पर दोपहर बाद से जाम लगना आरंभ हो गया था परंतु प्रशासन ने सुध नहीं ली। भागीरथपुरा से लक्ष्मीबाई नगर रेलवे स्टेशन होकर जाने वाले मार्ग पर भी लगातार जाम लगता रहा। क्या प्रशासन को इन मार्गों पर जाम लगने के बाद कोई तात्कालिक कदम नहीं उठाने थे? वहीं उज्जैन की ओर से आने वाले वाहन चालकों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। क्या यह बात किसी भी पूर्व अधिकारी से पूछी नहीं जानी चाहिए थी कि बिना हो हल्ला मचाए अगर दोपहिया वाहनों की आवाजाही धीमी गति से भी चलती रहती तब जाम से मुक्ति मिल सकती थी। इसका कोई तर्क नहीं है कि अगर पहली झांकी स्वदेशी मिल पुल पर पहुंची ही है तब आप चिकमंगलुर चौराहे से लेकर जेलरोड तक के सभी मार्ग बंद कर दें। निश्चित रुप से यह आम इंदौरियों के सब्र का ही परिणाम था कि आयोजन सफल रहा वरना ट्रैफिक अधिकारियों ने दोपहर बाद से ही ट्रैफिक बंद कर लोगों की आवाजाही पर रोक लगा दी थी। जबकि इसके पूर्व जब भी झांकियां निकली हैं तब जेलरोड से लेकर संपूर्ण झांकी मार्ग को दोपहिया वाहनों के लिए इस तरह खोला जाता था पहली झांकी पहुंचने के कुछ मिनट पूर्व तक दोपहिया वाहनों की आवाजाही जारी रहे ताकि यातायात का दबाव कम होता रहे लेकिन इस बार इसका अंदाजा अधिकारी लगा ही नहीं पाए और परिणाम सभी को भुगतना पड़ा। दूसरी ओर प्रशासन ने इस बार झांकियों और अखाड़ों में से झांकियों को ज्यादा प्राथमिकता दी कि वे जैसे-तैसे झांकियों को आगे निकाल ले जाएं पर उन्हें यह समझ नहीं आया कि जीवंत झांकियां तो अखाड़े ही हैैं। शहर में अखाड़ों की परंपरा और उनके प्रति इंदौरियों के मन में क्या आदर भाव है ये प्रशासन जान ही नहीं पाया। कई अखाड़ों के खलीफा पहले से ही प्रशासन की सख्ती से नाराज चल रहे थे। प्रशासन ने कानून-व्यवस्था बनाने के लिए जो भी प्रयास किए उसमें स्थानीय इनपुट्स को नजरअंदाज कर दिया। अगर शहर में काम कर चुके पुराने अधिकारियों से बात कर ली होती तो शहर जाम में न फंसता और सब कुछ व्यवस्थित होता। अगले तीन दिनों तक झांकियों का प्रदर्शन मिलों में चलता रहेगा इस दौरान भी यातायात की समस्या आ सकती है। प्रशासन को इसके लिए पुख्ता इंतजाम करना चाहिए वरना फिर जगह-जगह जाम लगेगा।
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