मिनिट्स पर साइन कर समझे एमओयू साइन हो गया

इंदौर। डॉक्टर्स मरीजों का इलाज कर सकते हैं, मेडिकल कॉलेज में स्टूडेंट्स को पढ़ा सकते हैं लेकिन जब उनसे प्रशासनिक कार्य लिया जाता है या जबरन उन्हें उसमें धकेला जाता है तो इसके परिणाम बेहतर नहीं होते। यही कारण है कि प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं अरबों के बजट के बाद भी बेहतर नहीं हैं। इसी का नतीजा है कि पिछले महीने एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डीन ने दिल्ली में हुई बैठक के मिनिट्स पर साइन किए और समझ लिया कि एमओयू साइन हो गया। इसके बाद वे आराम से बैठ गए। अब पता चला है कि एमओयू साइन ही नहीं हुआ है।  पिछले दिनों ज्वॉइंट डायरेक्टर (फाइनेंस) इंदौर आए और उन्होंने डीन को बताया कि आपने बैठक के मिनिट्स पर साइन किए थे। आपको तो एमओयू पर साइन करना है। इस जानकरी के बाद वे हतप्रभ हैं। मिली जानकारी के मुताबिक मार्च-17 में एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डीन एमजीएम मेडिकल कॉलेज में बनने वाले 200 करोड़ के सुपर स्पेशलिटी यूनिट के संबंध में हुई बैठक में शामिल हुए थे। बैठक में प्रोजेक्ट को सहमति दे दी गई थी और बताया गया था कि 60 प्रतिशत राशि केंद्र और 40 प्रतिशत राशि राज्य सरकार द्वारा इस प्रोजेक्ट के लिए दी जाएगी। बैठक में यह भी साफ हो गया था कि इस प्रोजेक्ट में कौन-कौन से विभाग शामिल हो रहे हैं। साथ ही निर्माण कंपनी, लागत आदि पर भी चर्चा हुई थी। बैठक के मिनिट्स तैयार हुए थे जिस पर डीन ने भी साइन किए थे। बैठक के बाद डीन यह समझे कि उनका काम खत्म हो गया। पिछले दिनों जब ज्वॉइंट डायरेक्टर श्री वर्मा इंदौर आए और उन्होंने एमओयू तैयार करने की बात कही तब यह हकीकत सामने आई। मिली जानकारी के मुताबिक अब तक एमओयू साइन करना तो दूर बना भी नहीं है जबकि बैठक के तुरंत बाद एमओयू साइन हो जाना चाहिए था लेकिन पांच माह एमओयू लेट हो गया है। एमओयू को लेकर अब तक कोई तैयारी नहीं है। एमओयू दो प्रपत्रों ए और बी में तैयार होगा। एमओयू इसलिए साइन होगा क्योंकि केंद्र और राज्य सरकार का 60-40 का रेशो है। बिना एमओयू के प्रोजेक्ट शुरू नहीं होगा। इसे बनाकर पहले राज्य सरकार के पास भेजा जाएगा और वहां से केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा। जहां उस पर अंतिम मुहर लगेगी। इसके बाद निर्माण एजेंसी अपना काम शुरू करेगी। यही कारण है कि निर्माण एजेंसी और एम्स की टीम के जाने के लंबे समय बाद भी वहां से कोई जवाब नहीं आया है। शुरूआती दौर में ही प्रोजेक्ट लेट होना शुरू हो गया है। यही कारण है कि पिछले दिनों एमजीएम कॉलेज में निर्माण कार्यों के उद्घाटन समारोह में लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने इशारों-इशारों में निर्माण कार्यों में हो रही लेटलतीफी को उजागर करते हुए आशंका जताई थी कि कहीं ऐसा न हो कि 150 करोड़ का यह प्रोजेक्ट लेटलतीफी के कारण 300 करोड़ का हो जाए। एमजीएम मेडिकल कॉलेज में अरबों के बजट वाले प्रोजेक्ट शुरू हो रहे हैं या शुरू हो चुके हैं। इनमें एमबीबीएस की 100 सीटों वाला 150 करोड़ का प्रोजेक्ट, 200 करोड़ का सुपर स्पेशलिटी प्रोजेक्ट, इसके अलावा वायरोलाजी, बोनमेरो ट्रांसप्लांट आदि करोड़ों के प्रोजेक्ट हैं। इसमें कॉलेज के डीन और एमवायएच अधीक्षक की अहम भूमिका रहेगी। वर्तमान में दोनों ही पदों पर प्रभारी अधिकारी बैठे हुए हैं। प्रशासनिक कार्यों के लिए जो दक्षता होना चाहिए वह इन दोनों के पास नहीं है क्योंकि प्रभारी अधिकारियों को अपने दायित्व के अलावा नियमित क्लास लेना और मरीजों को ओपीडी में देखना होता है। इसके साथ ही प्रभारी अधिकारियों पर ऐसी बंदिश नहीं होती कि वे प्राइवेट प्रेक्टिस न करें। ऐसे में उनके पास कॉलेज, अस्पताल के प्रशासनिक कार्यों के लिए समय ही नहीं बचता और वे इसमें अपना 100 प्रतिशत क्यों दें जबकि उन्हें मालूम है कि यह पद उनसे कभी भी छीन लिया जाएगा। बेहतर यह होना चाहिए कि इन महत्वपूर्ण पदों पर प्रभारी अधिकारी क्यों बैठाए जा रहे हैं? यदि इन्हें ही बैठाया जाना है तो समय सीमा होना चाहिए कि इतने समय के लिए इन्हें यह पद संभालना होगा।