ठंड का मौसम याने खानपान का मौसम और इस मौसम में इंदौरियत बिल्कुल शबाब पर रहती है। खालिस इंदौरी लोगो की बात की जाए तब सही मायने में यह गजक गराडू वाला मौसम अपने आप में तरावट लाने वाला होता है सामान्य दिनों में घर पर खाना खाने के बाद ठंड का मजा लेने के लिए बाहर निकले और गरम दूध के कढ़ाव में से एक गिलास गरमा गरम दूध और उसमें एक दोना रबड़ी का डालकर राजवाड़े के आसपास घूमने का जो सुख है वह असली इंदौरी को ही समझ आ सकता है। हम इंदौरी ऐसे ही है हमें गराडू,गजक खाना बहुत पसंद है और हम देर रात तक सराफे में डेरा डालकर यह सबकुछ खाने में गौरवान्वित महसूस करते है। ठंड में तो गरमा गरम जलेबी का स्वाद ओर भी बढ़ जाता है। ठंड सही समय पर निर्धारित मात्रा में ठंडक लेकर आ जाती है तब सही मायने में मौसम सुहाना हो जाता है। चौराहो पर अलाव जला कर बैठे लोगो के साथ हम भी हाथ सेंक कर गरमाहट ले लेते है। दरअसल ठंड याने सुबह के समय के बेहतरीन नाश्ते से लेकर देर शाम आलू की कचोरी प्याज की चटनी के साथ और फिर देर शाम तक यूं ही खानपान का दौर चलते ही रहता है। मूल मुद्दा यह है कि हम खानपान को लेकर हम जबान के पक्के है और अपने शहर को लेकर बेहद जज्बाती भी है। यह जज्बात यूं ही बने रहे इसलिए प्रयास अब करने होंगे क्योंकि शहर ने अपने आकार को बहुत बडा कर लिया है जैसे इतने दिनों से यह सबकुछ खाकर तोंद बढ़ गई हो। आज शहर में स्थितियां यह है कि दूरियां बढ़ गई है और बाहर से शहर में आकर बस जाने वाले लोगो को असली इंदौरियत क्या होती है इसका पता ही नहीं चलता। जब ये लोग बाहर से शहर में आते है तब कुछ समय बाद सराफा और छप्पन के बारे में जानकारी आसपास के लोगो से प्राप्त कर लेते है और वहां जाकर स्वादिष्ट व्यंजनों का स्वाद भी लेकर आ जाते है परंतु वे असली इंदौरियत क्या है यह नहीं जान पाते वे देवी अहिल्या मां के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते पर नहीं कर पाते क्योकि यह सबकुछ आसानी से उपलब्ध ही नहीं है। राजवाड़े को देखते है और मन ही से अनुमान भी लगा लेते है वे होलकरो के इतिहास को जानना चाहते है पर जानकारी नहीं मिल पाती क्योंकि ऐसा कुछ भी मौजूद ही नहीं है। क्या हम इन खाऊ ठियो के माध्यम से इंदौर के बारे में बाहर से आए लोगो को जानकारी नहीं दे सकते। क्या स्वच्छ इंदौर स्वादिष्ट इंदौर की परिकल्पना को साकार इन लोगो के माध्यम से ही नहीं कर सकते। निश्चित रुप से यह सरकार का काम तो नहीं इसके लिए हम इंदौरियों को ही आगे आना होगा और यह बताना होगा कि इंदौरी लोग किसी जमाने में टिमटिम चाय शौक से पीते थे और शिकंजी को हम अमृतपेय क्यों कहते है? अगर इसे हम पर्यटन के साथ जोड़कर देखे तब सही मायने में शहर में ऐसे पर्यटको का आना भी आरंभ हो जाएगा जो सही मायने में फूडी है और खानपान के शौकीन है।
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