इंदौर। विद्यार्थियों को मानसिक अवसाद और आत्महत्या जैसे कदमों से बचाने के लिए अब शिक्षकों को अभिभवाकों की भूमिका में सामने लाया जाएगा। शिक्षा विभाग जल्द ही तीस विद्यार्थियों के समूह की जिम्मेदरी एक शिक्षक को अभिभावक के रूप में सौंपेगा। यह शिक्षक विद्यार्थियों से चर्चा कर उनके व्यवहार पर ध्यान रखेंगे और यदि किसी विद्यार्थी में कोई परिवर्तन दिखाई देता है तो उसकी काउंसिलिंग करेंगे।। जरूरी हुआ तो मनोवैज्ञानिक की सहायता भी विद्यार्थी को उपलब्ध कराई जाएगी।
शिक्षा विभाग के सूत्रों के अनुसार दसवीं और बारहवीं के विद्यार्थियों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। परीक्षा के दौरान पेपर ठीक से हल नहीं कर पाने अथवा रिजल्ट खराब आने पर विद्यार्थी अवसाद में आ जाते हैं और आत्महत्या जैसे कदम तक उठा लेते हैं। पिछले वर्ष रिजल्ट आने के बाद ऐसे कई प्रकरण पूरे प्रदेश में सामने आए थे। इसके बाद शासन ने समिति गठित की थी। समिति को विद्यार्थियों की समस्याओं का निराकरण करने, उन्हेें अवसाद और आत्महत्या से बचाने के उपाय सुझाने के लिए कहा गया था। समिति की रिपोर्ट आने के बाद अब हर जिले में उक्त व्यवस्था की जा रही है। जिलास्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में समिति गठित की जाएगी। जिसमें वरिष्ठ नागरिक, स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि, अभिभावकगण और प्रबुद्धजन शामिल रहेंगे। समिति विद्यार्थियों की समस्या सुलझाएगी और उन्हें तनावरहित बनाने के लिए विभिन्न उपायों को लागू करेगी।
तीस विद्यार्थियों के समूह पर एक शिक्षक को अभिभावक बनाया जाएगा। यह शिक्षक उस क्लास को पढ़ाने वाले शिक्षकों में नहीं होगा जिस क्लास के बच्चों का समूह बनाया गया हो। शिक्षक अभिभावक के रूप में बच्चों से संवाद बढ़ाएगा, उनकी परेशानियों को सुनेगा और उनके व्यवहार पर नजर रखेगा। परीक्षा में पेपर खराब जाने अथवा रिजल्ट खराब आने पर भी शिक्षक तुरंत बच्चों से संपर्क कर उनसे चर्चा कर उनकी बातें सुनेगा और उन्हें सलाह देगा। निजी और सरकारी स्कूलों में काउंसलरों की नियुक्ति के निर्देश भी दिए गए हैं। काउंसलरों से बच्चे सातों दिन कभी भी चर्चा कर राय ले सकेंगे। इसके अलावा शैक्षणिक कैलेंडर तैयार करते समय योग और ध्यान के लिए पीरियड तय किए जाएंगे। हर स्कल के शिक्षकों को योग का प्रशिक्षण दिलाया जाएगा ताकि वे बच्चों को योग सिखा सकें।
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