इंदौर। भवन निर्माण की अनुमति व अन्य प्रक्रियाओं के नियमों में बार-बार परिवर्तन के कारण भवन मालिकों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। कभी कहा जाता है कि पूरी प्रक्रिया आॅनलाइन होगी, कभी भवन अधिकारियों को नोटिस जारी नहीं करने के निर्देश दिए जाते हैं तो कभी आर्किटेक्ट को संपूर्ण अधिकार दे दिए जाते हैं। इन बदलावों से क्या सुधार हो रहा है अथवा शाासन या नगर निगम को क्या लाभ हो रहा है यह आम लोगों की समझ से परे है लेकिन भवन बनाने वाले लोगों की परेशानियां जरूर बढ़ जाती हैं। अब नए नियमों के तहत नक्षा पास होने के बाद निर्माण के दौरान भवन मालिक को कई बार नगर निगम के चक्कर लगाने पड़ेंगे।
हाल ही में जारी नए निर्देशों के अनुसार अब सामान्य मकान, ऊँचे भवन, कॉम्प्लेक्स आदि के निर्माण के लिए नक्षा पास कराने के बाद निर्माण शुरू करने की सूचना भी नगर निगम को देनी होगी। निर्माण को विभिन्न हिस्सों में विभाजित करते हुए कहा गया है कि हर हिस्से के निर्माण के बाद निगम को सूचना देकर वहां से प्रमाण पत्र लेना होगा और इसके बाद ही अगले हिस्से का निर्माण किया जा सकेगा। यदि प्रमाण पत्र में यह दर्शाया गया कि किया गया निर्माण नियमों के अनुसार नहीं है तो अगले हिस्से का निर्माण रोक दिया जाएगा। जब निर्माण पूरा हो जाएगा तो निगम से सर्विस प्रमाण पत्र लेना होगा। इसके बाद ही पानी, बिजली और ड्रेनेज लाइन की सुविधा मिल सकेगी। इतना सब होने के बाद पूर्णता प्रमाण पत्र के लिए फिर नगर निगम में आवेदन देना होगा। एक बार फिर भवन की जांच होगी और निगम पूर्णता और भवन के उपयोग का प्रमाण पत्र जारी करेगा। जानकारों का कहना है कि इस प्रक्रिया से जटिलता बढ़ेगी क्योंकि एक भवन के निर्माण के दौरान भवन मालिक को कई बार निगम के भवन निरीक्षकों के पास जाना होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो इससे निर्माण में विलंब होगा और अधिकारियों की मनमानी बढ़ेगी।
नए निर्देशों में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि एक बार नक्षा पास करने के बाद निर्माण की हर स्टेज पर नगर निगम को सूचना देने का क्या लाभ होगा। यदि यह मान भी लिया जाए कि किसी एक स्टेज पर निर्माण कार्य नक्षे के अनुसार नहीं पाया गया तो इस प्रक्रिया से अवैध निर्माण को रोका जा सकेगा यह संभव नहीं है। स्वीकृत नक्षे से हट कर हर भवन में कुछ न कुछ निर्माण तो होता ही है। चूंकि ऐसा निर्माण भवन के अंदर होता है इसलिए निगम तक उसकी सूचना नहीं पहुंच पाती है। प्रक्रिया भले ही बदल दी गई हो लेकिन निरीक्षक स्तर तक तो वही हाल हैं क्योंकि वर्तमान में भी अवैध निर्माण की जानकारी निरीक्षकों को ही रहती है और अधिकांश मामलों में यह जानकारी निगम मुख्यालय तक नहीं पहुंचती है तो बाद में भी कैसे पहुंचेगी।
इंदौर में फिलहाल निगम प्रशासन ने भवनों के निर्माण की अनुमति देने और जांच के मामले में दो अलग-अलग टीमें बना दी हैं। भवन अधिकारी नक्षे स्वीकृत करेंगे और डिप्टी कमिश्नर के नेतृत्व में गठित इंजीनियरों का दल निर्माण के दौरान भवनों की जांच करेगा। अनियमितताएं पाई जाने पर यही टीम नोटिस जारी कर कार्रवाई करेगी। अब शासन द्वारा जारी नए निर्देशों के अनुसार अगले कुछ महीनों में इस प्रक्रिया में फिर परिवर्तन किया जाएगा।
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