इंदौर। स्मार्ट सिटी बनने जा रहे इंदौर शहर में खेल मैदानों की भारी कमी है। जो मैदान बचे हैं उन्हें भी धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है। न तो प्रशासन और न ही जनप्रतिनिधियों को इस बारे में कोई चिंता है।
शहर फैलता जा रहा है, सीमेंट-कांक्रीट का जंगल खड़ा होता जा रहा है लेकिन मूलभूत सुविधाएं गायब होती जा रही हैं। होलकर शासन के बाद भी जब शहर आकार में छोटा था तब यहां बगीचे बड़ी संख्या में थे। वाचनालयों की संख्या काफी अधिक थी और लोग उनका उपयोग भी करते थे। शहर की सड़कों को हर सुबह पानी से धोया जाता था। शहर में चारों ओर खेलने के लिए पर्याप्त संख्या में मैदान थे। वरिष्ठ नागरिकों को यह सब अब भी याद है। शहर बढ़ता गया और धीरे-धीरे बगीचों की जमीनों पर कब्जे होते गए, वाचनालय गायब हो गए। इसके बाद करीब बीस वर्ष पूर्व वार्डों में वाचनालय खोले गए थे। पुस्तकें और उन्हें रखने के लिए अलमारियां खरीदने के लिए बजट दिया गया था। जिन कमरों में वाचनालय संचालित होते थे उनका किराया और वहां तैनात कर्मचारियों का वेतन भी नगर निगम देता था लेकिन जैसे ही परिषद का कार्यकाल पूरा हुआ सभी वाचनालय किताबों और अलमारियों सहित गायब हो गए। इसके बाद तो शहर वाचनालयों को भूल ही गया।
खेल मैदान तो अब इतनी सीमित संख्या में बचे हैं कि उन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है। इन मैदानों में से भी कुछ पर ही खेल गतिविधियां नियमित रूप से संचालित हो रही हैं और वहां भी पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। नई कॉलोनियों में खेल मैदान, उद्यान, कम्युनिटी हॉल और स्कूल के लिए जमीनें नक्षों में तय की गईं और अंतत: अधिकांश कॉलोनियों में ये जमीनें नक्षों पर ही रह गईं। उत्तरी क्षेत्र में अटल खेल परिसर, मध्य क्षेत्र में मल्हाराश्रम और चिमनबाग मैदान, पूर्वी क्षेत्र में नेहरू स्टेडियम और पश्चिम क्षेत्र में वैष्णव स्टेडियम ही अब खेल मैदान के रूप में जाने जाते हैं। बच्चों को यदि खेलना है तो कई किलोमीटर तक जाने के बाद मैदान के दर्शन हो पाते हैं। कई छोटे बच्चे भारी ट्रैफिक के बीच साइकलों पर मैदानों की ओर आते-जाते दिखाई देते हैं। शहर के बीचोंबीच स्थित छोटे मैदान पर संचालित प्रभात क्लब पर भी खतरा मंडरा रहा है। इस मैदान से रास्ता निकालने के लिए नगर निगम द्वारा योजना तैयार कर ली गई है। यदि ऐसा हुआ तो यह मैदान भी हाथ से निकल जाएगा। इस स्थिति में स्मार्ट सिटी में अच्छे खिलाड़ी कैसे तैयार हो सकते हैं।