होली को त्यौहार आते ही बस संचालकों ने आम लोगों की जेब खाली करना शुरू कर दिया है। हर त्यौहार पर यही हाल होते हैं। टिकट की कीमत कई गुना बढ़ा दी जाती है और मजबूरन यात्रियों को बढ़ी हुई राशि देनी पड़ती है क्योंकि आरटीओ से लेकर भोपाल तक आम आदमी की इस समस्या पर सुनवाई करने वाला कोई नहीं है। वर्ष भर में कुछ प्रमुख त्यौहारों पर बाहर कार्यरत लोग अपने घरों को लौटते हैं। इसी का फायदा उठाने के लिए बस संचालक भी लंबे समय से प्रतीक्षारत रहते हैं। उन्हें पता है कि इंदौर से लेकर भोपाल तक कहीं कोई कार्रवाई नहीं होने वाली। खुलेआम कई गुना किराया वसूला जा रहा है। टिकट पर बढ़ा हुआ किराया भी लिखा जा रहा है। पिछले वर्ष कुछ लोगों ने आरटीओ को शिकायत भी की थी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। ट्रेनों में आरक्षित सीटें नहीं बची हैं और जनरल कोच में पैर रखने की जगह नहीं मिल रही है। बस संचालकों द्वारा हर घंटे में एक नहीं कई बार किराया बदला जा रहा है अर्थात हर यात्री से अलग-अलग किराया। बस रवाना होने के समय यदि कोई यात्री आता है तो उससे तो कई गुना अधिक किराया लिया जा रहा है। सामान्य दिनों में यदि एक सीट का 500 रुपए किराया लगता है तो त्यौहार के दिनों में यही किराया दो से ढाई हजार तक पहुंच जाता है। जब यात्री वापस लौटते हैं तब भी यही हाल होता है। आम लोगों की जेब खाली करने के इस षड्यंत्र में शामिल लोगों की शृंखला काफी लंबी है। उसे तोड़ना भी आम लोगों के बूते में नहीं है। वे लगाता शोषण के शिकार हो रहे हैं। लोगों को अब भी उम्मीद है कि विधानसभा चुनाव के इस साल में तो कोई जिम्मेदार इस ओर ध्यान देकर अवैध वसूली पर रोक लगाएगा। देखते हैं कि उनकी उम्मीद पूरी होती है या नहीं।