तापमान में थोड़ी वृद्धि शुरू होते ही इंदौर में पानी का धंधा शुरू हो गया है। नर्मदा का भरपूर पानी आने के बाद भी शहर की प्यास नहीं बुझ पा रही है। बायपास और शहर सीमा पर स्थित कॉलोनियों में पूरे साल टैंकरों से ही पानी खरीदना पड़ता है क्योंकि वहां तक नर्मदा के पानी के लिए लाइन ही नहीं बिछी है। पानी का कारोबार पूरे साल भर में करोड़ों रुपए का है। प्राकृतिक संसाधन का दोहन कर कई लोग खुलेआम पानी बेच रहे हैैं लेकिन इस पर शासन का कोई नियंत्रण नहीं है। होटलों और बहुमंजिला भवनों में भी टैंकरों से ही पानी मंगाना पड़ता है। नर्मदा का पानी तो लोगों के घरों तक पर्याप्त मात्रा में पहुंच ही नहीं पाता है। लोगों को नलों में मोटर पम्प लगा कर पानी खींचना पड़ता है तब जाकर चौबीस घंटे के लिए पानी की व्यवस्था हो पाती है। सीधे मोटर पम्प लगने के कारण कई बस्तियों में पानी कम मात्रा में पहुंच पाता है। जैसे-जैसे गर्मी का मौसम आगे बढ़ता जाएगा वैसे-वैसे पानी के टैंकरों के भाव आसमान छूते जाएंगें। टैंकरों से बेचे जा रहे पानी की गुणवत्ता की भी जांच नहीं होती है कि वह पीने लायक है अथवा नहीं। लोगों ने मकानों के समीप कई फुट गहरी हौद बनवा रखी हैं और वे टैंकरों को उनमें खाली करवाते हैं। शहर सीमा से लगे ग्रामीण क्षेत्र के ट्यूबवेलों से भी गर्मी में पानी बेचा जाता है। नगर निगम द्वारा भी प्राइवेट टैंकरों से जल वितरण कराया जाता है फिर भी शहर प्यासा रहता है और लोग बर्तन लेकर भटकते दिखते हैं। सवाल यह उठता है कि पानी उपलब्ध है तभी तो पानी माफिया लाखों रुपए का कारोबार भी कर रहा है फिर अधिकारियों की नजर उन पर क्यों नहीं पड़ती है? जलकर देने के बाद भी जनता को पानी खरीद कर क्यों पीना पड़ रहा है?