इंदौर। प्रदेश के सबसे बड़े शासकीय अस्पताल एमवायएच में बोन मैरो के सफल ट्रांसप्लांट के 17 दिन बाद जूनीइंदौर निवासी 33 वर्षीय मरीज उपेंद्र को अस्पताल से उसके घर भिजवाया गया। एक अन्य मरीज नीमच निवासी 45 वर्षीय कुसुम को मंगलवार को घर रवाना किया जाएगा।
मरीज उपेंद्र को अस्पताल से डिस्चार्ज करते समय संभागायुक्त संजय दुबे, यूनिट इंचार्ज डॉ. ब्रजेश लाहोटी, अधीक्षक डॉ. वीएस पाल सहित कई डॉक्टर व अन्य स्टाफ मौजूद था। डीन डॉ. शरद थोरा के अनुसार अप्रैल से थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों का बोन मैरो ट्रांसप्लांट भी शुरू किया जा रहा है। मल्टीपल मायलोमा यानी कैंसर पीड़ित मरीज का आॅटोलॉगस ट्रांसप्लांट किया गया। इसके लिए जीवन रक्षक व्हाईट ब्लड सेल्स (डब्ल्यू.बी.सी.) को कुछ समय के लिए शरीर से पूरी तरह खत्म कर दिया गया था। फिर डब्ल्यूबीसी बढ़ाने के लिए मरीज को दवाइयां दी गईं। इसके बाद धीरे-धीरे स्टेम सेल निकाले गए। मरीज को कीमोथैरेपी के हाई डोज देकर संक्रमित कोशिकाएं नष्ट की गईं। उसके बाद नई स्वस्थ कोशिकाएं प्रत्यारोपित की गईं।
मरीज उपेंद्र के अनुसार 17 मई 2014 को पहली बार पता चला कि मुझे कैंसर है। शुरूआत में डेढ़ साल तक इलाज के लिए भटकता रहा। पहले एम्स, फिर मुंबई और वहां से इंदौर। 12 बार एमआरआई हुई। इंदौर में शासकीय कैंसर हॉस्पिटल में डॉ. रमेश आर्य से मिला। रेडिएशन थैरेपी के बाद जांच कराई तो रिपोर्ट सामान्य आई। इसके बाद सामान्य जीवन जी रहा था कि तभी स्पाइनल कार्ड में नस दबने से शरीर के ऊपरी हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। कुछ समय बाद शरीर का निचला हिस्सा भी निष्क्रिय हो गया। 2016 में बीमारी फिर लौटकर आ गई। हम फिर मुंबई पहुंचे, जहां बताया गया कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट ही विकल्प है। डॉ. आर्य ने एमवायएच में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बारे में बताया। इसके बाद यहां सफल उपचार हुआ।