इंदौर। गरीबों को सस्ती दरों पर खुद का आशियाना देने के लिए लागू की गई प्रधानमंत्री आवास योजना का क्रियान्वयन शहर में इतनी धीमी गति से हो रहा है कि शायद गरीब अपनी छत का सपना ही देखता रह जाएगा। 2015 में लागू योजना के तहत आवास निर्माण हेतु जमीनों का सीमांकन ही दो साल बाद अब हो पाया है। इस बीच जीएसटी लागू होने के बाद प्रस्तावित फ्लेट्स की लागत बढ़ जाएगी। गरीबों के सामने नया संकट खड़ा हो गया है कि वे अधिक कीमत कहां से चुकाएंगे। सबका विकास, सबका आवास पर आधारित प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए अधिग्रहित जमीन का शनिवार को सीमांकन किया गया। वर्ष 2015 में अस्तित्व में आई आवास योजना का क्रियान्वयन धीमी गति से हो रहा है। इसके तहत वर्ष-2022 तक शहर में रहने वाले गरीबों को 60 हजार फ्लैट कम दामों में उपलब्ध कराया जाना प्रस्तावित है। निगम के अपर आयुक्त संतोष टैगोर ने बताया कि भूरी टेकरी, छोटा बागंड़दा के पास नया बसेरा, लिंबोदी, दूधिया और निरंजनपुर में झुग्गी-झोपड़ियों में निवासरत परिवारों को सर्वप्रथम इसका लाभ दिया जाएगा। भूरीटेकरी के विस्थापितों को समीप स्थित रिक्त पड़ी भूमि पर टिन शेड में ठहराया गया है। वर्तमान में निगम ने किसी भी स्थान पर निर्माण कार्य शुरू नहीं किया है। अभी तो कागजी कार्रवाई ही जारी है। उधर जीएसटी के कारण गरीबों का अपनी छत का सपना संकट में पड़ता नजर आ रहा है। जीएसटी लागू होने के पहले नगर निगम ने फ्लैटों की कीमत तय कर दी थी। न्यूनतम राशि में गरीबों को फ्लैट मिलते और वे आसान किश्तों में राशि चुका देते, मगर जीएसटी के बाद फ्लैटों की कीमत नए सिरे से तय की जा रही है। फ्लैट महंगे होने से उन्हें खरीदना गरीबों के बूते की बात नहीं होगी। ऐसे में योजना ठप होने का अंदेशा बना हुआ है। उल्लेखनीय है कि गरीबों को सस्ते फ्लैट देने के मामले में इंदौर विकास प्राधिकरण खुद संकट में पड़ा हुआ है।। प्राधिकरण द्वारा गरीबों के लिए बनाए गए फ्लैट लंबे समय से बिकने की राह देख रहे है। कीमत अधिक होने से गरीब वर्ग के लोग इन्हें खरीद नहीं पा रहे हैं।
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