देश की आर्थिक विकास दर घटने से अर्थशास्त्री चिंतित


नई दिल्ली। अर्थव्यवस्था अभी नोटबंदी के असर से उबर नहीं पाई है। वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही के आंकड़ों को देखकर तो लगता है अप्रैल-जून की तिमाही में आर्थिक विकास दर घटकर 5.7 फीसदी पर आ गई। इससे पहली तिमाही (मार्च 2017) में विकास दर 6.1 फीसदी थी। पिछले साल के जून की तिमाही से तुलना करें तो यह गिरावट और बड़ी नजर आएगी। उस दौरान आर्थिक विकास दर 7.9 फीसदी थी।मार्च 2017 की तिमाही के आंकड़े सामने आए थे तब सरकार अपनी पीठ थपथपाकर कहा था कि नोटबंदी का जीडीपी ग्रोथ पर उतना बुरा असर नहीं पड़ा है, जितनी आंशका जताई जा रही थी। लेकिन इस तिमाही के आंकड़ों ने नोटबंदी के दुष्प्रभाव को पूरी तरह उजागर कर दिया है।क्या कहते हैं विशेषज्ञ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सरकार को अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए अहम कदम उठाना होगा, नहीं तो हालात और खराब होने की संभावना है। सरकार ने जीडीपी की गणना ठीक से नहीं की है। सरकार नोटबंदी से पहले और नोटबंदी के बाद एक ही पैमाने यानी संगठित क्षेत्र के आधार पर गणना कर रही है। नोटबंदी का ज्यादा खराब असर संगठित क्षेत्र की बजाए असंगठित क्षेत्र पर पड़ा है। पहले ही नोटबंदी से परेशान असंगठित क्षेत्र पर जीएसटी ने दोहरा भार पड़ा है। जीडीपी की गणना में सिर्फ संगठित क्षेत्र शामिल है। लिहाजा असंगठित क्षेत्र पर नोटबंदी का जो असर पड़ा है वह जीडीपी के आंकड़ों में नजर नहीं आ रहा है। अगर असंगठित क्षेत्र की ग्रोथ क आकलन किया जाए तो जीडीपी की ग्रोथ इससे भी कम होगी.विशेषज्ञों का कहना है कि बाजार में करंसी की भरपाई होने से हालात एक झटके में बेहतर नहीं हो सकते। मांग और आपूर्ति की चेन बिगड़ गई है। सर्विस सेक्टण में भी भारी गिरावट है। अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए सरकार को अहम कदम उठाने होंगे। अगर ऐसा नहीं किया गया तो भारतीय अर्थव्यवस्था एक कुचक्र में फंस जाएगी।  सरकार को मांग और निवेश बढ़ाने की दिशा में कुछ जरूरी कदम उठाना होगा तभी नोटबंदी और जीएसटी का असर कम किया जा सकता है।सेंट्रल स्टेटिस्टिक्स आॅफिस के आंकड़ों अर्थशास्त्रियों की चिंता और बढ़ गई है। इन आंकड़ों के अनुसार रियल या इनफ्लेशन एडजस्टेड जीडीपी की ग्रोथ पिछले तीन साल में सबसे कम रही है। आंकड़ों से पता चलता है कि 8 प्रतिशत का ग्रोथ रेट हासिल करने में काफी समय लगेगा। वित्तीय वर्ष 2015-16 में अर्थव्यवस्था की ग्रोथ रेट 8 प्रश थी। 2014 में मोदी सरकार आने के बाद यह सबसे कम ग्रोथ रेट है।ससरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि सबसे कमजोर मेन्युफेक्चरिंग के आंकड़े रहे हैं। जून 2017 तिमाही में मेन्युफेक्चरिंग की ग्रोथ रेट सिर्फ 1.2 प्रश रही। पिछले साल इसी तिमाही में यह ग्रोथ रेट 10.7 प्रश थी। अर्थशास्त्रियों के का कहना है कि गिरावट की वजह जीएसटी को माना जा रहा है। सरकार ने जीएसटी लागू करने की डेडलाइन 1 जुलाई तय की थी। जीएसटी लागू होने के बाद टैक्स गणना में बदलाव होना तय था। इस कारण कारोबारियों का फोकस मेन्युफेक्चरिंग के बजाए पुराना स्टॉक निकालने पर रहा। जिसका असर जीडीपी पर साफ नजर आ रहा है।फाइनेंशियल, इंश्योरेंस, रियल एस्टेल और प्रोफेशनल सर्विसेज सेक्टर में भी गिरावट आई है। इनकी ग्रोथ रेट जून तिमाही में 6.4 फीसदी रही, जो पिछले साल की इसी तिमाही में 9.4 फीसदी थी।चीन से पिछड़ी भारत की ग्रोथ रेटभारत अब तक सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था थी लेकिन ताजा आंकड़े आने के बाद दृश्य बदल गया है। आर्थिक विकास दर के मामले में अब चीन भारत से आगे निकल गया है। पिछले साल चीन की ग्रोथ रेट 6.9 फीसदी थी। जून 2017 तिमाही में भी चीन अपनी ग्रोथ रेट बरकरार रखने में कामयाब रहा है जबकि इस दौरान भारत की ग्रोथ रेट घटकर 5.7 प्रश पर आ गई है।