2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला- सभी आरोपी बरी

नई दिल्ली। बहुचर्चित 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले में पटियाला हाउस कोर्ट ने सभी तीन केसों में मुख्य आरोपी पूर्व केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ए. राजा और कनिमोझी समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। विशेष सीबीआई न्यायाधीश ओपी सैनी की अदालत ने फैसले में कहा कि सीबीआई ए. राजा, कनिमोझी सहित सभी आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर पाई। यह फैसला आने के बाद कांग्रेस नेता जोश में हैं क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव से अब तक भाजपा द्वारा लगातार कांग्रेस पर इस घोटाले को लेकर आरोप लगाए जा रहे थे।
2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में कुल तीन केस थे, जिनमें से दो मामले सीबीआई और एक मामला प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दर्ज किया था। पहले केस में सीबीआई ने पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा और अन्य के खिलाफ अपने पद का दुरुपयोग करने तथा आपराधिक षड्यंत्र रचने के मामले में दर्ज किया था। दूसरा केस एस्सार कंपनी और उसके प्रमोटर्स के खिलाफ था। तीसरा केस ईडी ने ए. राजा सहित अन्य व्यक्तियों और कंपनियों के खिलाफ 200 करोड़ रुपए के मनी लॉन्ड्रिंग का दर्ज किया था।
जिन मामलों में फैसला आया, उनमें से एक में एस्सार समूह के प्रमोटर रविकांत रुइया और अंशुमान रुइया, लूप टेलीकाम की प्रमोटर किरन खेतान, उनके पति आई.पी. खेतान और एस्सार समूह के निदेशक (रणनीति एवं योजना) विकास सर्राफ आरोपी थे। सीबीआई द्वारा दायर पहले मामले में राजा और कनिमोझी के अलावा पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा, राजा के पूर्व निजी सचिव आर.के. चंदोलिया, स्वान टेलीकॉम प्रमोटर शाहिद उस्मान बलवा और विनोद गोयनका, यूनीटेक लिमिटेड एमडी संजय चंद्रा और रियालंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह के तीन शीर्ष कार्यकारी अधिकारी गौतम दोशी, सुरेंद्र पिपारा और हरि नायर आरोपी थे।
साल 2010 में सीएजी (महालेखाकार और नियंत्रक) की एक रिपोर्ट आई थी। इस रिपोर्ट में साल 2008 में बांटे गए स्पेक्ट्रम पर सवाल किए गए थे। रिपोर्ट में बताया गया था कि स्पेक्ट्रम की नीलामी नहीं की गई, बल्कि इसे कंपनियों को 'पहले आओ, पहले पाओ' के आधार पर बांटा गया था। साथ ही बताया गया था कि इससे सरकार को 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपए का घाटा हुआ था। यह भी कहा गया था कि अगर नीलामी के आधार पर लाइसेंस बांटे जाते तो यह रुपए सरकार के खजाने में जाते।
कौन-कौन थे आरोपी?
इस घोटाले में यूपीए में दूरसंचार मंत्री रहे ए. राजा पर आरोप लगाया गया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने साल 2001 में तय किए गए रेट के हिसाब से लाइसेंस बांटे जिससे सरकार को घाटा हुआ। इसके साथ ही उन पर आरोप था कि उनकी पसंदीदा कंपनियों को लाइसेंस दिए गए हैं। ए. राजा को इस मामले में जेल भी काटनी पड़ी थी, जिसके बाद उन्हें जमानत मिल गई थी। तमिलनाडू के पूर्व मुख्यमंत्री एम. करूणाधि की बेटी कनिमोझी को भी जेल हुई थी, कनिमोझी को भी बाद में जमानत मिल गई थी। कई कंपनियों और बड़ी हस्तियों पर घोटाले का आरोप लगा था। प्रधानमंत्री कार्यालय और तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम पर भी सवाल उठाए गए थे। ए. राजा ने अपनी सफाई में कहा था कि उन्होंने जो भी फैसले लिए थे, वे तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जानकारी में लिए थे।