बेंगलुरु। अमेरिका द्वारा एच 1-बी वीजा पर की जा रही सख्ती का असर शीघ्र ही भारत में दिखाई देने वाला है। अमेरिका में कार्यरत भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स के साथ ही भारत में भी आईटी सेक्टर में युवाओं की नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है। अमेरिकी सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदम से वहां से 5 लाख इंजीनियरों से ज्यादा इंजीनियरों को वापस भारत आना पड़ सकता है।
ट्रंप प्रशासन ने प्रस्ताव रखा है कि ग्रीन कार्ड हासिल करने के लिए इंतजार कर रहे लोगों की एच 1-बी वीजा की अवधि अब नहीं बढ़ाई जाए। यदि यह प्रस्ताव लागू होता है तो सबसे ज्यादा असर भारतीय इंजीनियरों पर पड़ेगा क्योंकि एच 1-बी वीजा का जितना कोटा प्रतिवर्ष तय है उसके सर्वाधिक हिस्से का लाभ भारतीय इंजीनियर ही कर रहे हैं। प्रतिवर्ष जारी होने वाले 85 हजार एच 1-बी वीजा में से करीब 50 प्रतिशत भारतीय वर्कर्स को जारी होते हैं। अनुमान है कि यदि ट्रंप का प्रस्ताव लागू होता है तो करीब 5 लाख से अधिक अनुभवी भारतीय आईटी इंजीनियरों को अमेरिका छोड़ना पड़ सकता है।
अमेरिकी सरकार द्वारा की जा रही इस पहल से भारतीय आईटी कंपनियों के सामने संकट खड़ा होता जा रहा है क्योंकि नया कानून लागू होते ही भारत में आईटी सेक्टर में कार्यरत कई इंजीनियरों की नौकरी खतरे में पड़ सकती है। कई कंपनियों ने तो अभी से छंटनी शुरू करने की तैयारी भी कर ली है ताकि अमेरिका से लौटने वाले अनुभवी इंजीनियरों के लिए जगह बनाई जा सके। वे यहां कार्यरत इंजीनियरों के लिए चुनौती पेश करेंगे। सूत्रों के अनुसार कुछ कंपनियों में तो कार्रवाई शुरू भी हो गई है और औसत दर्जे का कार्य करने वालों को या तो स्वयं नौकरी छोड़ने के लिए कहा जा रहा है अथवा 30 से 60 दिनों का नोटिस दिया जा रहा है।
अमेरिका के मौजूदा कानून के अनुसार विदेशी गेस्ट वर्कर्स को एच 1-बी वीजा की 3 वर्ष की वैधता के अलावा एक बार तीन वर्ष का विस्तार और मिलता है। अगर इन 6 वर्षों के दौरान संबंधित व्यक्ति का ग्रीन कार्ड (स्थाई निवास) का आवेदन लंबित है तो उसके एच 1-बी वीजा को तब तक अनिश्चितकाल के लिए विस्तार मिल जाता है जब तक कि ग्रीन कार्ड के आवेदन पर निर्णय होता है।
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