नई दिल्ली। यूजीसी द्वारा विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों में शिक्षकों की भर्ती के लिए रेगुलेशन-2018 का प्रारूप यूजीसी की वेबसाइट पर 9 फरवरी को अपलोड कर त्रुटि सुधार, सुझाव आमंत्रित किए गए हैं। 28 फरवरी तक कोई भी सुझाव दे सकता है। जाहिर है भर्ती नियम मार्च के प्रथम सप्ताह तक जारी कर दिए जाएंगे।
रेगुलेशन-2018 में अहम फैसले
कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए यूजीसी (यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन) ने कई अहम फैसले लिए हैं। इसके तहत अब कॉलेज-यूनिवर्सिटी में लेक्चरर बनने के लिए सिर्फ नेट क्वालिफाई होना ही योग्यता का मापदंड नहीं होगा। इसके लिए पीएचडी होना भी अनिवार्य होगा। हालांकि यह नई व्यवस्था 2021 से लागू होगी। नेट क्वालिफाई के बाद सीधे लेक्चरर बन चुके शिक्षकों के लिए भी अब 2020 तक पीएचडी करना अनिवार्य होगा। अन्यथा उन्हें प्रमोशन नहीं मिलेगा। यूजीसी ने यह गाइड लाइन तैयार कर ली है। 28 फरवरी तक पब्लिक और टीचर्स एसोसिएशन से भी सुझाव मांगे गए हैं। उसके आधार पर कुछ और बदलाव हो सकते हैं। फिर मार्च में इससे संबंधित निर्देश जारी किए जाएंगे। नई व्यवस्था के तहत 2021 से किसी भी कॉलेज, यूनिवर्सिटी में होने वाले नए अपॉइंटमेंट में यह नियम लागू होगा। यानी सिर्फ नेट के आधार पर ही नियुक्ति नहीं हो सकेगी।
रैगुलर अध्यापकों के बराबर वेतन की मांग कर रहे कालेजों के कॉन्ट्रैक्ट अध्यापकों को यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन द्वारा पूरा करने का फैसला लिया गया है। यू.जी.सी. की तरफ से फरवरी 2018 में उच्च शिक्षा से संबंधी जारी किए नए नियमों में यू.जी.सी. ने कॉन्ट्रैक्ट अध्यापकों को भी रैगुलर अध्यापकों के बराबर वेतन देने के निर्देश जारी कर दिए हैं। यही नहीं यू.जी.सी. ने कॉन्ट्रैक्ट की बजाय रैगुलर भर्ती संबंधी भी निर्देश जारी किए हैं।
डिजिटल लर्निंग भी बनेगा प्रमोशन का आधार
शिक्षकों में डिजिटल लर्निंग को भी प्रमोशन का आधार बनाया जाएगा। पोर्टल सहित अन्य स्तर पर चल रहे आॅनलाइन कोर्सेस को बढ़ावा दिया जाएगा। ताकि प्रोफेसरों की कमी के कारण जो दिक्कतें आ रही हैं, वह दूर हो सकें, क्योंकि आॅनलाइन कोर्स में 10 से 15 फीसदी टीचिंग स्टाफ की ही जरूरत होती है।
7 घंटे संस्थान में रुकना अनिवार्य - यूजीसी ने लेक्चरर, रीडर और प्रोफेसरों को स्पष्ट किया है कम से कम 7 घंटे कॉलेज में रुकना अनिवार्य है। जानकारों के मुताबिक यूजीसी ने जो नए नियम तैयार किए हैं, उसमें नेट के साथ पीएचडी की अनिवार्यता बड़ी बात है।
11 जुलाई 2009 तक पंजीकृत अथवा डिग्री पा चुके पीएचडी के छात्रों को अब नियुक्ति में कोई परेशानी नहीं होगी। विश्वविद्यालयों में 2009 तक की शोध उपाधि को लेकर उठने वाले सभी सवाल खत्म हो जाएंगे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने रेगुलेशन-2018 में वर्ष 2009 तक की शोध उपाधि को जोड़ते हुए तसवीर साफ कर दी है। इसमें पांच बिंदु पूरा करने वाले छात्रों को असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति में नेट-स्लेट की बाध्यता से पूरी तरह छूट रहेगी।
यूजीसी ने हाल में यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में शिक्षक और अन्य शैक्षणिक स्टॉफ की नियुक्ति के लिए रेगुलेशन 2018 का ड्राफ्ट जारी किया है। 28 फरवरी तक इसमें विश्वविद्यालय, कॉलेज एवं शिक्षकों को फीडबैक देनी होगी। इस रेगुलेशन में सर्वाधिक राहत जुलाई 2009 के नियमों में देशभर में फंसे एमफिल-पीएचडी छात्रों को होगी। यूजीसी ने ड्राफ्ट में 11 जुलाई 2009 तक पंजीकृत या डिग्री पा चुके छात्रों को नेट-स्लैट की बाध्यता से छूट के लिए अनिवार्य पांच बिंदुओं को शामिल कर लिया है। यानी भविष्य में विश्वविद्यालय एवं कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर को जो भी नियुक्तियां निकलेंगी उनमें 11 जुलाई 2009 तक पंजीकृत या डिग्री पा चुके छात्रों के लिए स्पष्ट निर्देश दर्ज होंगे। ड्राफ्ट में पांच बिंदु और निर्धारित प्रोफार्मा भी स्पष्ट हो गया है।
अभी तक यह थी दिक्कत
यूजीसी ने यूं तो 11 जुलाई 2009 तक के छात्रों को पहले ही नेट-स्लेट की बाध्यता से छूट के आदेश दे दिए थे, लेकिन विश्वविद्यालयों में इसे लेकर तमाम दिक्कतें थी। हर यूनिवर्सिटी इन छात्रों के लिए नेट-स्लैट से छूट को जरुरी पांच बिंदु और इसके प्रमाण पत्र की अलग ढंग से व्याख्या कर रही थी। ऐसे में छात्र परेशान थे। चूंकि अब ये सभी बिंदु नियुक्ति प्रक्रिया के लिए अनिवार्य रेगुलेशन 2018 में शामिल कर लिए गए हैं जिससे देशभर में सभी विश्वविद्यालय इसे स्वीकार करेंगे। इससे इन छात्रों को राष्ट्रीय स्तर पर एक स्तर पर ट्रीट किया जाएगा। इन पांच बिंदुओं के अनुसार छात्र की पीएचडी रेगुलर मोड में होनी चाहिए, थिसिस का मूल्यांकन दो बाहरी परीक्षकों से होना चाहिए, छात्र का ओपन पीएचडी वायवा होना चाहिए, पीएचडी से दो रिसर्च पेपर प्रकाशित होने चाहिए जिसमें से एक रेफर्ड जर्नल में छपा हो, साथ ही छात्र द्वारा दो पेपर प्रजेंटेशन होने चाहिए। जिन छात्रों के ये पांच बिंदु पूरे हैं और उन्हें रजिस्ट्रार या डीन एकेडमिक्स ने सत्यापित किया है वे सभी छात्र अब नेट-स्लैट की बाध्यता से बाहर रहेंगे।
बिना पीएचडी प्रमोशन भी नहीं
यूजीसी ने ड्राफ्ट रेगुलेशन में बिना पीएचडी प्रमोशन पर भी रोक लगा दी है। यानी असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए जहां नेट-स्लैट अनिवार्य योग्यता रहेगी वहीं प्रमोशन के लिए पीएचडी जरुरी है। जिन छात्रों के पास रेगुलेशन 2009 एवं संशोधित 2016 के नियमों से पीएचडी है वे नेट के दायरे से बाहर रहेंगे।
एमफिल-पीएचडी करने का समय अनुभव नहीं
ड्राफ्ट के अनुसार यदि कोई छात्र एमफिल-पीएचडी की उपाधि प्राप्त करता है तो वह समय टीचिंग या रिसर्च अनुभव नहीं माना जाएगा। वह इस अवधि को नियुक्ति में अनुभव के रूप में क्लेम नहीं कर सकेगा। हालांकि सर्विस करते हुए टीचिंग एसाइनमेंट के साथ बिना छुट्टी लिए किया गया रिसर्च वर्क अनुभव में माना जाएगा। इसी तरह छुट्टी लेकर पीएचडी करने को भी नियुक्ति के लिए अनुभव में नहीं जोड़ा जाएगा।
शिक्षकों के लिए पीएचडी की बढ़ सकेंगी सीट
यूजीसी ने कार्यरत शिक्षकों के लिए सीट रिक्त नहीं होने की स्थिति में विभाग में अतिरिक्त सीट बनाने का अधिकार विश्वविद्यालयों को दे दिया है। विश्वविद्यालय ऐसी स्थिति में विभाग में कुल सीटों का 10 फीसदी सीट सुपरन्यूमेरेरी श्रेणी में बढ़ा सकेंगे। कैंपस के शिक्षकों के लिए भी यह व्यवस्था लागू रहेगी। रेगुलेशन-2009 एवं 2016 में सुपरन्यूमेरेरी सीट की व्यवस्था खत्म कर दी गई थी।
शैक्षणिक प्रदर्शन सूचकांक (एपीआई)
यूजीसी ने केंद्रीय राज्य विश्वविद्यालय और डिग्री कॉलेजों में शिक्षकों के प्रमोशन नियुक्ति के लिए अनिवार्य एकेडमिक परफॉर्मेंस इंडेक्स को खत्म कर दिया है। नई नियमावली के मुताबिक राष्ट्रीय या फिर अंतर्राष्ट्रीय जरनल में प्रकाशित एक शोध पत्र के आधार पर भी शिक्षकों को प्रमोशन मिल जाएगा। यह व्यवस्था 9 फरवरी 2018 से लागू कर दी गई है।
नए नियमों के अनुसार प्रोफेसर की सीधी भर्ती में अब 400 मार्क्स की एपीआई की जरूरत नहीं पड़ेगी। राष्ट्रीय या फिर अंतरराष्ट्रीय जनरल में 10 शोध पत्रों का प्रकाशन भी नियुक्ति में मान्य होगा। शोध से संबंधित अलग-अलग मानक के लिए 120 मार्क्स भी तय किए गए हैं। 10 वर्ष शैक्षणिक अनुभव भी जरूरी है। एसोसिएट प्रोफेसर की सीधी भर्ती में 7 शोध पत्र का प्रकाशन जरूरी किया गया है। मार्क्स का मानक 75 तय है. शैक्षणिक अनुभव 8 वर्ष का होना चाहिए। असिस्टेंट प्रोफेसर की सीधी भर्ती में नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट और स्लेट को अनिवार्य कर दिया गया है। हालांकि यूजीसी की गाइडलाइन के हिसाब से जो अभ्यार्थी पीएचडी कर रहे हैं, उन्हें भी भर्ती प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जा सकेगा।
प्राचार्य को 10 वर्ष से ज्यादा का कार्यकाल नहीं
प्राचार्य की नियुक्ति और उनके कार्यकाल में भी बदलाव किया गया है। अब उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग से नियुक्त प्राचार्य को अधिकतम 10 वर्ष का कार्यकाल मिल सकेगा। पहला कार्यकाल 5 साल का होगा। यदि कॉलेज प्रबंधन चाहता है तो अगले 5 साल का कार्यकाल और दे सकता है। अभी तक कार्यकाल तय नहीं था
दो कैटेगरी में बांटे गए कॉलेज
अब स्नातक, परास्नातक स्तर के डिग्री कॉलेजों को दो कैटेगरी में बांटा गया है। पहली कैटेगरी में शामिल कॉलेज के प्राचार्य को प्रोफेसर के बराबर वेतनमान मिलेगा। 15 वर्ष का शैक्षणिक अनुभव रखने वाले शिक्षक ही प्राचार्य बन सकेंगे। दूसरी कैटेगरी के कॉलेज में प्राचार्य को असोसिएट प्रफेसर के बराबर वेतन मिलेगा। 10 वर्ष का शैक्षणिक अनुभव रखने वाले शिक्षक की प्राचार्य बनेंगे।