1986 में भी चीन को खदेड़ चुके हैं भारतीय सैनिक

नई दिल्ली। भारत वर्ष 1986 में भी चीन को बुरी तरह मात दे चुका है लेकिन तब मीडिया में इसकी जानकारी नहीं आ पाई थी। हाल ही में पूरा घटनाक्रम सामने आया है। उस समय चीनी सेना अरुणाचल प्रदेश में काफी अंदर तक घुस आई थी। भारतीय सेना ने असाधारण साहस का परिचय देते हुए चीनी सैनिकों को खदेड़ कर उस क्षेत्र को पुन: अपने कब्जे में ले लिया था।
यह मामला अब भी सामने नहीं आता यदि अरुणाचल प्रदेश के तेंगा में तैनात भारतीय सेना की युवा महिला लेफ्टिनेंट अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में नहीं पहुंची होतीं। एक पोस्ट का नाम आशीष टॉप देख कर उन्होंने वहां तैनात सैन्य अधिकारियों से पूछा तो जवाब सुनकर उनकी आंखों में अांसू आ गए। सैन्य अधिकारियों ने महिला लेफ्टिनेंट को बताया कि आशीष और कोई नहीं बल्कि आपके पिता कर्नल आशीष दास हैं। उन्हीं के नाम पर सैन्य पोस्ट का नाम आशीष पोस्ट रखा गया है। आशीष असम रेजीमेंट में कर्नल थे और अब सेना से रिटायर हो चुके हैं।
महिला लेफ्टिनेंट ने वहीं से पिता को फोन लगाया और कहा कि मुझे आप पर गर्व है। उन्होंने बेटी को बताया कि हमारी यूनिट ने वर्ष 1986 में इस सेक्टर में चीनी सैनिकों को मात दी थी। उस समय तो तुम्हारा (बेटी का) जन्म भी नहीं हुआ था। कर्नल दास ने बताया कि उसके बाद सैन्य पोस्ट का नाम मेरे नाम पर रख दिया गया लेकिन मुझे इसकी जानकारी 17 साल बाद 2003 में मिली। वर्ष 1986 में चीनी सेना अरुणाचल प्रदेश के सुमदोरोंग वैली में घुस आई थी। चीनी सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा से काफी अंदर तक आ गए थे और उन्होंने वहां स्थायी हैलीपेड व अन्य निर्माण शुरू कर दिए थे। चीनियों को खदेड़ने के लिए तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल के. सुंदरजी ने आॅपरेशन फाल्कन शुरू किया था। पूरी इन्फ्रेंट्री ब्रिगेड को हवाई मार्ग से वहां पहुंचाया गया। भारतीय सेना ने 14 हजार फीट की ऊंचाई पर चीनी सेना को खदेड़ते हुए चोटी पर कब्जा कर लिया था। कर्नल दास के अनुसार सेना को बूम ला से रास्ता बनाना था और सांगेत्सर झील पहुंचना था। चीनी सैनिक झील के उस पार बैठे थे। लड़ाई के दौरान दोनों पक्षों के बीच भीषण गोलाबारी हुई। भारतीय जवानों को तीन दिन बिना भोजन के लड़ाई लड़नी पड़ी। लड़ाई के दौरान हमें राशन पहुंचाने के लिए हवाई मार्ग से प्रयास किया गया था लेकिन राशन चीनी सीमा के अंदर गिर गया। राशन नहीं होने की स्थिति में हमें चूहों को खाकर जिंदा रहना पड़ा।