नई दिल्ली। मरणासन्न व्यक्ति की वसीयत के आधार पर इच्छा मृत्यु को मंजूरी दिए जाने का फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने देश में स्वास्थ्य सेवाओं के गरीब लोगों की पहुंच से दूर होने की भी बात कही है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे देश में जहां ज्यादातर लोग चिकित्सा सेवाओं का लाभ लेने में सक्षम नहीं हैं, वहां ऐसे मरीज को लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर लंबे समय तक रखना तर्कसंगत नहीं है, जिसके वापस लौटने की आशा न के समान हो। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली 5 जजों की बेंच में शामिल जस्टिस एके सीकरी ने कहा कि मरणासन्न व्यक्ति पर हर दिन बड़ी राशि खर्च करना गरीब परिवारों की आर्थिक हालत को बर्बाद कर सकता है। 112 पेज के अपने निर्णय में जस्टिस सीकरी ने इकॉनमिक्स आॅफ यूथेनेशिया' नाम से लिखे चैप्टर में कहा है कि जब हम पैसिव यूथेनेशिया के आर्थिक सिद्धांत की बात करते हैं तो यह भी इसे मंजूरी देने का बड़ा कारण है। इसके दो पहलू हो सकते हैं। पहला, जो परिवार गरीबी में गुजर-बसर कर रहे हैं क्या वे अपने किसी परिवार के ऐसे सदस्य पर बड़ी राशि खर्च कर सकते हैं, जो मरणासन्न हो और उसके लौटने की आशा न हो। ऐसे में उनका घर और जीवन के लिए जरूरी अन्य चीजें तक बिक सकती हैं। दूसरा, जब मेडिकल फैसिलिटीज सीमित हों तो फिर उसका बड़ा हिस्सा उन लोगों पर क्यों लगाना चाहिए, जिनके वापस लौटने की ही आशा न हो।