लखनऊ। गोरखपुर और फूलपुर में हार से भाजपा के वरिष्ठ नेता सकते में हैं। जिन कारणों से 2017 में समाजवादी पार्टी का सफाया हो गया था लगभग उन्हीं कारणों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपने अपराजेय गढ़ गोरखपुर में सदर लोकसभा सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा है। यह सीट 29 सालों से भाजपा के कब्जे में थी।
गोरक्षपीठ के प्रभाव वाली सीट पर विपक्ष की जीत को असामान्य घटना के रूप में देखा जा रहा है। लोगों को यकीन नहीं हो रहा है कि भाजपा अपने अजेय दुर्ग में ही ढह गई। इस हार का संदेश दूर तक जाना तय है। यह फैसला गैर-भाजपा दलों का गठबंधन बनवाने में तो मददगार साबित होगा। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को उम्मीद थी कि मोदी सरकार के चार साल और अपने एक साल के कामकाज के बूते योगी इस चुनाव में पार्टी प्रत्याशी उपेन्द्रदत्त शुक्ल को ज्यादा बड़े अंतर से जितवाने में कामयाब होंगे।
निषाद पार्टी, पीस पार्टी और बसपा के सहयोग से सपा दिनोंदिन मजबूत होती गई। कार्यकर्ताओं में यही संदेश गया कि अगर इस बार जीत नहीं मिली तो फिर कभी नहीं। भाजपा इस खुशफहमी में डूबी रही कि सीएम के गढ़ में हार हो ही नहीं सकती। जब योगी सांसद रहते तीन लाख से अधिक वोट से जीते थे तो अब सीएम रहते उन्हें क्या कोई हरा पाएगा।
उधर फूलपुर में नागेंद्र पटेल ने पहली बार चुनाव लड़ा। पटेल की मतदाताओं पर अच्छी पकड़ के कारण सपा ने उन्हें प्रत्याशी बनाया। यह इलाका उप मुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य का है। पराजय के बाद मौर्य ने कहा कि बसपा ने कामयाबी के साथ सपा को अपने वोट ट्रांसफर कराए। हम ऐसी परिस्थितियों के लिए भी तैयारी करेंगे कि एसपी-बीएसपी और कांग्रेस साथ मिलकर लड़ सकते हैं।