82 साल बाद लड़कियों को मिली एंट्री

पुणे। महाराष्ट्र के पुणे में बाल गंगाधर तिलक व अन्य स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा खोले गए एक स्कूल की 82 साल पुरानी परम्परा इस साल टूट गई है। 82 सालों से इस स्कूल में लड़कियों को एडमिशन नहीं दिया जा रहा था लेकिन इस साल से स्कूल प्रबंधन ने इस परम्परा को तोड़ते हुए लड़कियों को एडमिशन देने की मंजूरी दे दी है।
19वीं शताब्दी में महिलाओं के साथ कई मामलों में भेदभाव किया जाता था। समाज में महिलाओं के पढ़ने, नौकरी अथवा व्यवसाय करने पर अघोषित रोक थी। बाल विवाह और सती प्रथा जैसी कुरीतियां प्रचलति थीं। इस दौरान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक, गोपाल गणेश अगरकर और विष्णु शास्त्री चिपलंकर आदि ने स्वतंत्रता संग्राम के साथ ही समाज सुधार का जिम्मा हाथ में लिया। वर्ष 1880 में उन्होंने डेकन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना कर पुणे में द न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना की। समाज के कुछ तबकों के भारी विरोध के बावजूद उन्होंने स्कूल में को-एजुकेशन सिस्टम लागू किया अर्थात लड़का-लड़की साथ पढ़ते थे। इसके बाद वर्ष- 1936 में संस्था के तत्कालीन पदाधिकारियों ने द न्यू इंग्लिश स्कूल में लड़कियों को प्रवेश देना बंद कर दिया और अहिल्या देवी स्कूल की स्थापना की जिसमें केवल लड़कियों को ही प्रवेश दिया जाता रहा।
द इंग्लिश स्कूल की प्रतिष्ठा अब भी बनी हुई है। वर्तमान में वहां के प्रिंसिपल नागेश मोने हैं। हाल ही में उन्होंने 82 साल पुरानी परम्परा को समाप्त कर दिया। प्रिंसिपल मोने का कहना है कि वर्तमान समय की जरूरतों के मुताबिक स्कूल प्रबंधन को भी कदम से कदम मिला कर चलने की जरूरत है। लड़के और लड़कियों को साथ पढ़ाना चाहिए इससे उन्हें पता चलता है कि स्त्री और पुरुष में कोई भेदभाव नहीं किया जाता, वे बराबर होते हैं। यदि हमें जेंडर न्यूट्रल माहौल बनाना है तो छोटी उम्र से ही लड़कियों और लड़कों को एक साथ स्कूल में पढ़ने का अवसर देना होगा। नए सत्र से द इंग्लिश स्कूल में लड़कियों को भी एडमिशन देने की शुरूआत तुरंत कर दी गई है और कुछ ही दिनों में 25 लड़कियों का एडमिशन हो भी चुका है।