तेजी से बढ़ रहे एविएशन सेक्टर के लिए क्या म.प्र. तैयार है?

इंदौर। शहर से विदेश के लिए सीधी उड़ान की तैयारियों के बीच यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि इंदौर में जेट एयरलाइंस ने नाईट पार्किंग के लिए भी जगह मांगी है। यह दोनों तथ्य इस बात की ओर इंगित कर रहे हैं कि इंदौर की तरफ अगर प्रदेश सरकार सही तरह से ध्यान दे तो इंदौर के देवी अहिल्याबाई होलकर हवाई अड्डे की तेजी से प्रगति को कोई नहीं रोक सकता।
जिस प्रकार से लो कॉस्ट एयरलाइंस को सफलता मिल रही और भारतीय अर्थव्यवस्था जिस प्रकार से आकार ले रही है उससे साफ जाहिर है कि हवाई यातायात में तेज गति से वृद्धि होना है। प्रदेश में इंदौर और भोपाल ही ऐसे हवाई अड्डे हैं जहां से बहुत ज्यादा बिजनेस आने की उम्मीद है। दोनों ही हवाई अड्डों में से इंदौर ने जो प्रगति की है वह अपने आप में काबिलेतारीफ है। इंदौर हवाई अड्डे ने तीन वर्षों में 4 लाख यात्रियों की बढोत्तरी की है। इंदौर में 2016-17 में 17.8 लाख यात्रियों ने हवाई यात्रा की है 2014-15 के 13.5 लाख यात्रियों की तुलना में।
इंदौर अन्य शहरों से उदाहरण ले सकता है
भविष्य में यह बात तय है कि हवाई अड्डों पर बायोमेट्रिक तरह से ही जांच होगी परंतु अपने आप को आगे लाने के लिए इंदौर हवाई अड्डे को अलग तरह की पहल करना होगी। जिस प्रकार से नागपुर हवाई अड्डे ने गर्ल चाईल्ड को लेकर मुहिम चलाई थी उसके कारण नागपुर हवाई अड्डे की प्रसिद्धि सभी दूर हो गई थी। याने अब किसी भी हवाई अड्डे को आर्थिक रुप से आगे आना है तब आउट आॅफ द बॉक्स विचार करना होगा। जिस प्रकार से सूरत हवाई अड्डे ने सूरत में चलने वाली बीआरटीएस बसों को हवाई अड्डा परिसर में आने के लिए जगह दी उसी तर्ज पर इंदौर में अभी से योजना बन सकती है जिसके कारण यात्रियों का समय भी बचेगा और वे जल्दी से हवाई अड्डे पर पहुंच भी सकेंगे। 
भारतीय आकाश का परिदृश्य इस प्रकार का होगा
- लो कॉस्ट एयरलाइंस में खाना नहीं देने से हवाई अड्डों पर रेस्टोरेंट की मांग बढ़ी। आगे आने वाले दिनों में हवाई अड्डों के आसपास ही एसईजेड को आकार दिया जा सकता है और हवाई अड्डे सहित आसपास के इलाकों को बिजनेस हब के रुप में विकसित किया जा सकता है। इंदौर हवाई अड्डे के पास पर्याप्त जगह है इस प्रकार के कार्य करने के लिए। साथ ही हाल ही में 28 एकड़ अतिरिक्त जमीन के बारे में बातचीत चल रही है उस पर अगर अमल हो जाता है तब इस प्रकार का बिजनेस हब बनाया जा सकता है।  
वर्ष 2020 तक भारत में 800 एयरक्राफ्ट उड़ान भरने लगेंगे
देश में जिस प्रकार से लो कॉस्ट एयरलाइंस को सफलता मिल रही है उससे यह आंकड़ा बिल्कुल प्राप्त करने योग्य है कि वर्ष 2020 तक भारत के आकाश में 800 एयरक्राफ्ट उड़ान भरेंगे। कल्पना करें कि इंडिगो ने एक ही दिन में 900 फ्लाईट उड़ाकर रेकॉर्ड बनाया था और अगर 800 एयरक्राफ्ट उड़ान भरेंगे तब देश के आकाश में एयर ट्राफिक कितना होगा।
क्या करना होगा प्रदेश को
एयर ट्राफिक बढ़ने के दो ही तरीके हैं जिसमें से एक बिजनेस है और दूसरा पर्यटन। प्रदेश के पास दोनों ही बिंदुओं में आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त कारण हैं। प्रदेश में पर्यटन के लिए तमाम तरह की सुविधाएं मौजूद हैं। हमें अपने आप की ब्रांडिंग करना होगी खासतौर पर विदेशों में तब जाकर प्रदेश के पर्यटन को तेज गति से बढ़ावा मिलेगा। साथ ही देश के पर्यटन स्थलों को हवाई मार्ग से कैसे जोड़ा जाए इसका भी ध्यान रखना होगा। इससे निश्चित रुप से प्रदेश में हवाई यात्रियों की संख्या में वृद्धि हो सकती है। 
इंदौर को एमआरओ हब के रुप में विकसित करें
मेंटेनेंस रिपेयर ओवरहॉल (एमआरओ) केंद्र के रुप में इंदौर को विकसित किया जा सकता है। भारत में एमआरओ बिजनेस 500 मिलियन का है जो कि वर्ष 2020 तक 1.5 मिलियन डॉलर होने की संभावना है। भारतीय विमान कंपनियां अपने रेवेन्यू का 13 से 15 प्रतिशत इस पर खर्च करती हैं। इंदौर देश के ह्रदय स्थल में स्थित है इसके कारण यहां पर पार्किंग के साथ ही एमआरओ हब के रुप में भी विकसित किया जा सकता है। मालभाड़े के लिए भी प्रयास किए जाने चाहिए ताकि इंदौर से खाद्य पदार्थों से लेकर दवाईयां आदि सीधे निर्यात की जा सकें। प्रदेश सरकार अगर गंभीरता के साथ विचार करे और न केवल विचार करे बल्कि योजना को मूर्तरुप सही तरीके से और समयबद्ध करे तब इंदौर हवाई अड्डे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लाने से कोई नहीं रोक सकता। 
कुछ अन्य तथ्य
- वर्तमान में 60 प्रतिशत एयरपोर्ट ट्राफिक पीपीपी मॉडल में हैंडल किया जाता है बाकी का 40 प्रतिशत 
विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा। 
- ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट विकसित करने होंगे। आंध्रप्रदेश ने 6 शहरों में इसकी योजना बनाई है। प्रदेश में इसकी योजना बनाई जा सकती है।
- वर्ष 2016-17 में 264.99 मिलियन यात्रियों ने सफर किया जो कि 421 मिलियन होगा 2020 तक।
- प्रदेश में 27 हवाई पट्टियों के विकास की बात की गई थी परंतु उस पर अमल आरंभ नहीं हुआ है।
- पर्याप्त प्रचार के अभाव में प्रदेश में रीजनल कनेक्टिविटी को बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है।