इंदौर। गुजरात विधानसभा चुनावों के जो भी परिणाम आएं भारतीय जनता पार्टी के भीतर प्रदेश को लेकर बड़े स्तर पर मंथन होना आरंभ हो गया है और इसका असर अभी से प्रदेश का वर्तमान में नेतृत्व कर रहे नेताओं पर पड़ रहा है। पार्टी में भीतर ही भीतर इस बात को लेकर मंथन चल रहा है कि अगर विधानसभा चुनावों के टिकट का बंटवारा ठीक तरह से नहीं हुआ तब प्रदेश भर में पार्टी को कई जगहों से विरोध का सामना करना पड़ेगा और ऐसे में संघ को डेमेज कंट्रोल के लिए उतरना ही पड़ेगा पर तब तक बातें काफी दूर तक जा चुकी होंगी। ऐसे में गुजरात चुनाव के परिणामों के बाद ही प्रदेश संगठन और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर बड़े बदलाव से पार्टी नीचे तक संदेश देना चाहती है कि संगठन से बड़ा कोई नहीं। इससे टिकट बंटवारे में भी आसानी होगी और वर्तमान के नेतृत्वकर्ताओं से कार्यकर्ताओं तथा आम जनता की नाराजगी भी नहीं रहेगी क्योंकि नए लोग आ जाएंगे। इससे आम जनता में भी अलग तरह का संदेश जाएगा और विधानसभा चुनावों में इसका अलग ही असर पड़ेगा।
राजस्थान और मध्यप्रदेश पर खास नजर
भारतीय जनता पार्टी राजस्थान और उससे बढ़कर मध्यप्रदेश को अपना गढ़ समझती है। पार्टी यह जानती है कि किस प्रकार से राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत ने गुजरात में कमाल किया है। गुजरात में राहुल गांधी के ही माध्यम से गेहलोत ने एक अलग मुकाम हासिल कर लिया है। परिणाम गुजरात में चाहे जो भी हों पर अशोक गेहलोत का कद जरुर बढ़ गया है और पार्टी ने उन्हें अभी से राजस्थान की पूर्ण कमान दे दी है। राजस्थान में अशोक गेहलोत की पकड़ बेहतरीन है और विधानसभा चुनावों में वे अपनी पकड़ का असर जरुर दिखाएंगे इस बात में कोई दो राय नहीं।
मध्यप्रदेश का मामला थोड़ा अलग है इस कारण पार्टी में इसे लेकर विचार मंथन चल रहा है। पार्टी किसी भी तरह से किसानों को नाराज नहीं करना चाहती वहीं वर्तमान सरकार के बारह वर्ष पूर्ण होने पर जिस प्रकार से आयोजन हो रहे हैं वे भी नजर में आ रहे हैं। इतना ही नहीं हाल ही में युवाओं के लिए एक बड़ा आयोजन किया जाना था जिसमें डेढ़ लाख युवाओं को इकठ्ठा किया जाना था परंतु ऐसा हो नहीं पाया और आयोजन को निरस्त कर दिया गया। प्रश्न यह उठता है कि लगातार 12 वर्षों तक राज करने के बाद भी ऐसे आयोजनों का औचित्य क्या है? क्या अब पहले जैसा आत्मविश्वास नहीं रहा या फिर अब आम जनता के बीच जाने की हिम्मत नहीं बची। खैर, ऐसे आभासी प्रश्न कई हैं पर व्यवहारिकता की बात यही है कि अगर प्रदेश में भाजपा को टिके रहना है तब कुछ नया करना होगा और उसके लिए बदलाव करने होंगे जो अब अवश्यंभावी हो गए हैं। अब देखना यह है कि पार्टी के लिए गुजरात के चुनाव परिणाम क्या लेकर आते हैं?
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