इंदौर। शासन ने अध्यापक संवर्ग को शिक्षा विभाग में संविलियन करने की अनुमति तो दे दी है लेकिन इसका लाभ अध्यापकों को तुरंत नहीं मिलने वाला। प्रक्रिया इतनी लंबी है कि अध्यापकों को करीब आठ माह का इंतजार करना पड़ सकता है। इस बीच विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई तो यह मामाला चुनाव के बाद नई सरकार आने तक लटक सकता है।
जानकारों के अनुसार यह पूरा मामला आदिम जाति कल्याण विभाग के अध्यापकों के कारण उलझेगा क्योंकि आदिम जाति कल्याण विभाग के करीब सवा लाख अध्यापकों का कैडर तो शिक्षा विभाग के समान हो सकता है लेकिन विभाग नहीं बदल सकता। प्रदेश में 2.84 लाख अध्यापक कार्यरत हैं। ये अध्यापक चार विभागों के अधीन हैं। इनकी नियुक्ति पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग और नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग करता है। स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा इनकी सेवा शर्तें व अन्य नियम तय किए जाते हैं। चौथा विभाग आदिम जाति कल्याण विभाग है जो कि बिलकुल ही अलग है और इस विभाग में करीब सवा लाख अध्यापक कार्यरत हैं। इन अध्यापकों के नियम, सेवाशर्तें और पदस्थापना पर पूरा नियंत्रण इसी विभाग का है। इन्हें शिक्षा विभाग के अधीन लाने के लिए संविलियन का प्रस्ताव केबिनेट की बैठक में रखना होगा। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के तहत स्कूल शिक्षा विभाग को पंचायत और नगरीय प्रशासन विभाग के अधीन कर दिया था। अब इन्हें पुन: शिक्षा विभाग में लाने के लिए संशोधन करना होगा। प्रस्ताव विधानसभा में रखना होगा। वहां से प्रस्ताव पारित होने के बाद गजट नोटिफिकेशन जारी करना पड़ेगा। उसके बाद ही संविलियन का आदेश जारी किया जा सकेगा।
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