मुंबई। डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने की केंद्र सरकार की योजना का उपयोग तो बढ़ा है लेकिन यह आम आम आदमी को महंगी पड़ रही है। डिजिटल भुगतान पर बड़ी राशि वसूली जा रही है। राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) से लेकर स्कूलों और कॉलेजों की फीस डिजिटल प्रणाली से भरने की कीमत लोगों को चुकानी पड़ रही है।
आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार सरकार को कैशलेस इकोनॉमी को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल लेनदेन के शुल्क पर अंकुश लगाना चाहिए। एनपीएस योजना में भुगतान पर सेवाकर और उस पर जीएसटी के अलावा डिजिटल भुगतान पर भारी शुल्क (50 हजार पर 470 रुपये) और उस पर जीएसटी वसूला जा रहा है। इसी तरह स्कूलों की प्रतिमाह या तिमाही फीस भरने में इंटरनेट बैंकिंग से भुगतान पर न्यूनतम 20 रु. और क्रेडिट कार्ड व ई-वॉलेट के गठजोड़ के माध्यम से भुगतान पर 170 रुपए तक वसूले जा रहे हैं। मेट्रो से लेकर निजी क्षेत्रों में पीओएस मशीन से भुगतान पर एक से डेढ़ प्रतिशत तक एमडीआर शुल्क लिया जा रहा है। विभिन्न बैंकों ने क्रेडिट कार्ड पर अपने शुल्क तय कर रखे हैं। मोबाइल वॉलेट धन स्थानांतरण में 3 से 4 प्रतिशत तक अधिभार वसूलते हैं। जबकि पेमेंट बैंक से नकदी निकालने पर 0.65 प्रतिशत और धन स्थानांतरण पर 0.5 प्रतिशत की अलग कीमत ग्राहक को चुकानी पड़ती है। यूपीआई, भीम और आधार पे से भुगतान पर शुल्क नहीं है।
कार्ड से लेनदेन एक साल में करीब दोगुना
डिजिटल भुगतान पर शुल्क भले ही वसूला जा रहा हो, लेकिन इसका दायरा तेजी से बढ़ रहा है। यूरोपीय पेमेंट सॉल्यूशंस कंपनी वर्ल्डलाइन के मुताबिक, भारत में पिछले एक साल में डिजिटल भुगतान और इलेक्ट्रॉनिक कार्ड का इस्तेमाल करीब दोगुना हो गया है।
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