वे फिल्म अभिनेता थे यह सभी जानते थे और वे बेहतरीन पटकथा लेखक थे यह भी सभी जानते थे पर वे बेहतरीन शिक्षाविद भी थे यह तथ्य सभी को पता नहीं था। जो स्क्रीन पर दिखता है वही सभी को सच लगता है और उसे ही लोकप्रियता भी मिलती है। गिरीश कर्नाड अपनी भारी भरकम आवाज और सहज अभिनय के लिए जाने जाते थे । गिरीश जी ने कर्नाटका आर्ट्स कॉलेज से गणित में डिग्री प्राप्त की और उसके बाद उन्होंने इंग्लैंड जाकर फिलोसाफी, पोलिटिक्स और एकोनॉमिक्स में मास्टर्स डिग्री भी प्राप्त की। गिरीश उस जमाने में याने 1963 में अॉक्सफोर्ड युनियन के अध्यक्ष बने थे। भारत आने के बाद उन्होंने वर्ष 1970 तक अॉक्सफोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस चैन्नई में लेखन का कार्य किया। वर्ष 1970 में द मद्रास प्लेयर्स नामक रंगकर्म की संस्था से जुड़े तथा लेखन का कार्य आरंभ कर दिया। वे एक वर्ष तक फिल्म एंड टेलिविजन इंस्टीट्यूय के निदेशक भी रहे और तथा संगीत नाटक अकादमी सहित नेशनल एकेडमी अॉफ द परफार्मिंग आर्ट्स में भी वे अध्यक्ष पद पर रहे। वे युनवर्सिटी अॉफ शिकागो में विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे और इसी दौरान कन्नड से अंग्रेजी में अनुवादित उनके कई नाटको का भी वहां पर मंचन हुआ। गिरीश जी को लेखन का शौक काफी पहले से था और 1961 में ययाती नाटक लिखा था जो काफी प्रसिद्ध हुआ। वर्ष 1970 में उन्होंने कन्नड फिल्म संस्कारा में काम किया और इस फिल्म ने प्रेसिडेंट्स गोल्डन लोटस अवार्ड प्राप्त किया। टेलिविजन के क्षेत्र में भी टीवी सिरियल मालगुड़ी डेज में उन्होंने स्वामी के पिता का किरदार निभाया है। टर्निंग पाइंट नामक दूरदर्शन के धारावाहिक में भी आपने काम किया। गिरीश जी की कार्यप्रणाली कितनी विस्तृत और वृहद थी की उन्होने निर्देशन में भी अपने हाथ आजमाए और उसमें भी सफलता प्राप्त की। वंश वृक्ष नामक फिल्म को श्रेष्ठ निर्देशन के लिए नेशनल फिल्म अवार्ड भी प्राप्त हुआ। इसके बाद गोधूली, उत्सव जैसी फिल्में निर्देशित की। इतना ही नहीं पुरंदर दास से लेकर कनका दास जैसे महान लोगो पर उन्होंने डाक्युमेंट्रीज बनाई जिन्हें कई अवार्ड प्राप्त हुए। कन्नड,हिंदी के अलावा अंग्रेजी में भी उनकी महारत हासिल की। उन्होंने हाल के कुछ वर्षो में नागेश कुकनूर की फिल्म इकबाल में काम किया। इसके अलावा आशाएं, एक था टाईगर और टाईगर जिंदा है जैसी फिल्मों में भी काम किया।
गिरीश कर्नाड का लंबी बीमारी के बाद सोमवार सुबह निधन हो गया। ज्ञानपीठ अवॉर्ड से सम्मानित इस अभिनेता का विवादो से भी नाता रह । वे कट्टर हिंदूत्व के विरोधी थे। गिरीश कर्नाड को 1998 में ज्ञानपीठ सहित का है। कर्नाड द्वारा रचित तुगलक, हयवदन, तलेदंड, नागमंडल व ययाति जैसे नाटक काफी लोकप्रिय हुये और भारत की अनेकों भाषाओं में इनका अनुवाद व मंचन हुआ है।गिरीश कर्नाड अभिव्यक्ति की आजादी पर काफी जोर देते थे और इसके लिए वे विवादों में भी रहे।
गिरीश कर्नाड का जाना सही मायने में रंगमंच और फिल्म दोनों के लिए बहुत बड़ा नुकसान है।