मुंबई। मानसिक समस्याओं से पीड़ित मरीजों की संख्या मुंबई महानगर में लगातार बढ़ती जा रही है। तेज गति से चलने वाले और अत्याधुनक जीवनशैली वाले इस शहर में पिछले 6 माह में मानसिक समस्याओं से परेशान 35 हजार लोग अस्पतालों में पहुंचे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार काम के दबाव,जीवनशैली में आए परिवर्तन और परिवारों में एक-दूसरे से संवाद कम होने के कारण यह स्थिति निर्मित हो रही है। पूरे महराष्ट्र को एक तरफ और मुंबई को दूसरी तरफ रख कर तुलना की जाए तो पूरे महाराष्ट्र में जितने मनोरोगी नहीं हैं उससे कहीं ज्यादा मनोरोगी केवल मुंबई महानगर में हैं। मुंबई में हर महीने 6 हजार से अधिक लोग मानसिक समस्याओं से पीड़ित होकर विभिन्न अस्पतालों में इलाज कराने पहुंच रहे हैं। अप्रैल से सितंबर तक मुंबई में मेंटल ओपीडी (मनोरोगी बाह्य चिकित्सा विभाग) मेें आने वाले मरीजों की संख्या 38 हजार 588 रही। विशेषज्ञों के अनुसार जीवनशैली में तेजी से परिवर्तन हो रहा है। परिवार के लोगों में आपस में संवाद बहुत कम हो गया है। इस कारण लोग अपनी भावनाओं के बारे में एक-दूसरे से चर्चा नहीं कर पाते हैं। वे मन ही मन घुटते रहते हैं। परिवार के अलावा आसपास के परिवारों अथवा रिश्तेदारों से घनिष्ठ संबंध रखने की परम्परा भी घटती जा रही है। इस कारण लोगों के समक्ष यह समस्या आ रही है कि वे अपनी भावनाओं के संबंध में किसी से चर्चा कर अपने मन का बोझ कम नहीं कर पा रहे हैं। वे मन ही मन घुटते रहते हैं। इसी कारण मानसिक समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। महानगर में एकाकी परिवारों (पति, पत्नी और एक संतान वाले परिवारों) का प्रचलन भी बहुत अधिक हो गया है। परिवार के सदस्यों को बुजुर्गों का साथ नहीं मिल पाता है। बुजुर्ग अपने अनुभवों के आधार पर परिवार के सदस्यों की समस्याओं के हल खोजने में उनकी मदद करते हैं। उक्त कारणों से लोग टेंशन, डिप्रेशन, सीजोफ्रेनिया के शिकार होते जा रहे हैं। विशेषज्ञों ने बताया कि बढ़ते कार्य बोझ से लोगों में नशे की आदत भी बढ़ती जा रही है। यह आदत भी मानसिक समस्याओं को उत्पन्न कर रही है। जब मानसिक तनाव सहन नहीं होता है तो लोग अस्पताल पहुंच कर डॉक्टरों से मदद मांगते हैं।
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