चिटफंड कंपनियों के लिए स्वर्ग बना मालवा क्षेत्र

इंदौर। मालवा क्षेत्र में चिटफंड कंपनियों का मकड़जाल खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। ये चिटफंड कंपनियां लगातार नाम बदल कर नए-नए बिजनेस प्लान लाकर भोली-भाली ग्रामीण जनता से पैसा लूट लेते हैं और जब साल छ: महीने में कंपनी के कर्ताधर्ता भाग जाते हैं तब जाकर पता चलता है कि कंपनी फर्जी थी। अब मनीकुबेरम इंडिया लिमिटेड के नाम से कंपनी का नाम आया है जो लोगों को मछली पालन की योजनाओं के नाम से मूर्ख बना रही थी और तीन वर्षों से लोगों से पैसा वसूल रही थी। कंपनी का कार्यालय मनमंदिर टॉकीज के पास बताया जा रहा है। 
कंपनी एजेंटों के माध्यम से पैसा वसूलती है। आरंभिक रूप में थोड़ा लाभ देकर निवेशकों का भरोसा जीतती है और बाद में पैसा लेकर भाग जाती है। कुछ समय पूर्व एक कंपनी सोलर एनर्जी के नाम पर लोगों से पैसा वसूल रही थी। पर्लपेन इंडिया सोलर एनर्जी लिमिटेड ने प्रदेश के ग्रामीण इलाकों से लेकर उत्तरप्रदेश तक अपना जाल बिछाया था और आम जनता से एजेंटो के माध्यम से पैसे वसूले थे। जब पांच वर्ष बाद जनता को डेढ़ गुना पैसा करने की बात आई तब कंपनी के कर्ताधतार्ओं ने हाथ ऊंचे कर दिए। कंपनी के प्रमुख को जब पुलिस ने गिरफ्तार किया तब उसने अपने पास केवल 1 करोड़ की संपत्ति ही बताई जबकि निवेशकों का कहना है कि उसने काफी संपत्ति बनाई है और तीन वर्षो में ही 19 करोड़ से ज्यादा वह कमा चुका है। यह पैसा उसने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को दे दिया जो कि ब्याज पर पैसा चला रहे हैं। अब पुलिस को जांच में कुछ भी नहीं मिल पा रहा है। 
बड़े-बड़े आॅफिसों में कागजात के नाम पर कुछ भी नहीं मिलता और कुछ समय जांच चलने के बाद ठंडी पड़ जाती है। पर्लपेन जैसी अन्य कंपनियां भी हैं जो लगातार लोगों को अलग-अलग नामों से ठगने की योजनाएं बनाती रहती हैं पुलिस के पास केस दर्ज करने की नौबत आती है तब तक काफी देर हो चुकी होती है। 
कार्यालय सील करने के बाद भी बाज नहीं आए
पुलिस द्वारा कार्रवाई करने के बाद कई कंपनियां जिनमें जी लाईफ भी शामिल है ने अपना ठौर-ठिकाना बदल दिया और दूसरे राज्य में जाकर काम करने लगी। इनके कार्यालय भी सील किए गए ताकि इनके द्वारा की जा रही धोखाधड़ी पर रोक लगाई जा सके परंतु ऐसा हुआ नहीं बल्कि  इन्होंने दूसरी जगह जाकर अपना धंधा फिर आरंभ कर दिया।
भोले-भाले ग्रामीणों को फंसाते हैं
चिटफंड कंपनियों द्वारा शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्र में अपने कार्य का फैलाव किया जाता है ताकि भोले-भाले ग्रामीणों को संतरे के बगीचों से लेकर सोलर एनर्जी और मछली पालन को लेकर विभिन्न योजनाओं का प्रलोभन देकर निवेश करवाया जा सके। इसके लिए ग्रामीण निवेशकों को एजेंट शहरी क्षेत्र में मौजूद इन चिटफंड कंपनियों के आलीशान कार्यालयों में लाते हैं। वहां की चकाचौंध से ग्रामीण जनता प्रभावित हो जाती है और निवेश के लिए मंजूरी दे देती है। इसके बाद असल ड्रामा आरंभ होता है। बड़े होटलों में पार्टियां आयोजित की जाती हैं और इनमें एजेंटों से लेकर निवेशकों को गिफ्ट दिए जाते हैं ताकि उनका भरोसा जीता जा सके। इसके बाद निवेश लगातार बढ़ाने पर जोर दिया जाता है और एजेंटों को भारी भरकम कमीशन दिया जाता है जिनमें कार से लेकर टू व्हीलर और ट्रेवल पैकेज इनाम में दिया जाता है। एजेंट इस झांसे में आ जाते हैं और अपने गांवों से भारी निवेश इन कंपनियों में करवा देते हैं। जब निवेश अच्छा खासा हो जाता है तब कंपनी एकाएक सबकुछ बंद करके फरार हो जाती है। 
एजेंटों की हालत पतली
चिटफंड कंपनियों से जुड़े कई एजेंट भी कंपनियों की धोखाधड़ी के शिकार हो चुके हैं और कई एजेंट ऐसे भी हैं जो निवेशकतार्ओं का दबाव झेलते-झेलते गांव छोड़कर शहर में बस जाने के लिए मजबूर हुए हैं। इन एजेंटों को निवेशकों के गुस्से का सामना तो करना ही पड़ता है बल्कि जान से मारने की धमकी भी सुनना पड़ती है।