तालाब भर जाते हैं और हम सो जाते हैं

इंदौर। तेज बारिश का दौर और शहर के तालाब लबालब भर जाते हैं, फिर हम शहरवासी वहां पर पिकनिक मना लेते हैं और शहर के तालाबों की फिक्र को लेकर गहरी नींद में सो जाते हैं। शहर में तालाब खाली रहते हैं तब हम नींद से नहीं जागते बल्कि केवल बड़बड़ाते रहते हैं कि तालाबों में पानी नहीं है। क्या हमने नए तालाबों के लिए कोई पहल की या जो तालाब बने हैं उनको सहेजने के लिए कोई कदम उठाए हैं? हम पूर्ण रुप से प्रकृति के भरोसे रहते हैं बावजूद इसके कि हमने नर्मदा से इंदौर पानी लाने के लिए तीसरा चरण भी अपना लिया है। क्या हम केवल सीमेंट का जंगल ही बढ़ाते रहेंगे और क्या टैंकरों के भरोसे ही हमें पानी की आपूर्ति होना अच्छा लगता है? प्रश्न बड़ा सीधा सा है कि हमें शहर में जल संरक्षण के लिए बड़ी पहल करना होगी...यह पहल गंभीरता के साथ बढ़ते शहर की जरुरत के अनुरुप होना चाहिए। हम तेज गति से बढ़ रहे हैं और हमारा फैलाव चारों तरफ तेजी से हो रहा है। भविष्य में किस तरह से जनसंख्या बढ़ेगी और पानी की शहर को कितनी जरुरत होगी इसे ध्यान में रखते हुए हमें योजना बनाना चाहिए। हमसे अच्छे पुराने जमाने के शहर के योजनाकार थे जिन्होंने जल संरक्षण के लिए जहां एक ओर कुएं-बावड़ियों की ओर ध्यान दिया वहीं दूसरी तरफ तालाबों की ओर भी न केवल ध्यान दिया बल्कि उसके आसपास अतिक्रमण न हो इसका भी ध्यान रखा। वर्तमान में हमें तालाबों को जैसे-तैसे बचाना पड़ता है और जब तालाब बचते हैं तब आसपास का पर्यावरण भी बचता है परंतु हम बिना सोचे-समझे या तो तालाब खाली करवा देते हैं जिससे लाखों मछलियां मर जाती हैं या फिर अतिक्रमण होने पर बाद में चिल्लाते रहते हैं। शहर को और शहर की जनता को तालाबों को बचाने के साथ-साथ उसे उसके मूल स्वरुप में बनाए रखने के लिए आगे आना होगा तभी बात बनेगी।