इंदौर। एक ओर फर्जी डॉक्टरों से यह शहर परेशान है वहीं दूसरी ओर असली डॉक्टरों की डेंगू के कारण हुई मौत से डॉक्टरों और प्रशासन में चिंता की लकीरें साफ देखी जा रही हैं। अब फॉगिंग की बात भी हो रही है और मच्छरों के लार्वा घर-घर जाकर खोजे जा रहे हैं। जागरुकता पहले आना थी परंतु नहीं आई जब आईएमए के पदाधिकारियों ने इन बातों का संज्ञान लिया कि शहर के ही तीन डॉक्टरों की मौत डेंगू के कारण हुई है तब जाकर शहर भी जान पाया कि मच्छरों के कारण यह बीमारी कितनी तेजी से फैल चुकी है और हर तीसरे घर में बुखार से पीड़ित मरीज अब भी दर्द झेल रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ शहर के आसपास की बस्तियों में फर्जी डॉक्टरों का खेल बदस्तूर जारी है जिनके लिए यह सीजन शबाब पर है।
स्टेरॉईड से लेकर बिना जानकारी वाली दवाईयां भी देते हैं
डेंगू के बाद पीड़ित मरीज हाथ-पैर दर्द की शिकायतें खूब करते हैं और ये फर्जी डॉक्टर बिना कुछ जाने इन मरीजों को स्टेरॉईड दे रहे हैं। इसके अलावा फर्जी डॉक्टर बिना कुछ जाने ही दवाईयों के हैवी डोज भी दे रहे हैं जिसके कारण मरीज को तात्कालिक आराम तो हो जाता है परंतु लंबे समय के लिए वह अन्य बीमारी को घर ले आता है। शहर में मालिश करने वालों से लेकर फार्मा क्षेत्र?से जुड़े कई लोग अपने आप को डॉक्टर कहलवाने लगे हैं और दवाएं पर्चे पर लिखते हैं। दवा कंपनियों के मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के लिए इस प्रकार के डॉक्टर काफी आसान लक्ष्य हो जाते हैं। इन्हें कमीशन का लालच दिया जाता है और दवा के बारे में जानकारी दी जाती है। यह संपूर्ण जानकारी एम.आर. द्वारा ही तथाकथित डॉक्टर को दी जाती है। जानकारी सही है या नहीं इस पर डॉक्टर ध्यान नहीं देता क्योंकि उतना उसे ज्ञान ही नहीं होता। जिन मरीजों को जरुरत नहीं उन्हें भी विटामिन की गोलियां दे देते है क्योंकि टारगेट जो पूर्ण करना होता है।
गरीब बस्तियों में पैर पसारते हैं
वर्तमान में शहर में तापमान की कमी होते ही फिर से सर्दी-खांसी और बुखार के मरीज बढ़ने लगे हैं ऐसे में फर्जी झोलाछाप डॉक्टर गरीब बस्तियों में पैर पसारने लगते हैं और दवाईयां देना आरंभ कर देते हैं। दस में से चार मरीज अपने आप ठीक हो जाते हैं तो वे दस और को वहां ले आते हैं। इन फर्जी डॉक्टरों का खेल ऐसा ही चलता रहता है और जब प्रशासन का दबाव आने लगता है तब थोड़े दिनों तक वहां से गायब होने के बाद वापस चले आते हैं।
फोटो खिंचवाने तक का अभियान न हो
आईएमए ने अब शहर के 85 वार्डों में जागरुकता अभियान चलाने की बात कही है। इसके लिए अलग-अलग संगठनों से बात की है जो इन वार्डों में जाकर बीमारियों और खासतौर पर मच्छरों को लेकर किस प्रकार की सावधानियां बरतनी चाहिए इस ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट करेंगे। अब प्रश्न वही उठता है कि इन संगठनों को केवल अपने आप को प्रोजेक्ट नहीं करना चाहिए और केवल फोटो खिंचवाने और सोशल मीडिया पर प्रसिद्धि पाने तक यह अभियान नहीं चलना चाहिए बल्कि अभियान में जो भी जुड़ सके उन्हें जोड़ना चाहिए। घरों पर मच्छर नहीं होने देना यह कहने भर से काम नहीं चलेगा। अभियान में जहां एक ओर जागरुकता फैलाई जाएगी वहीं दूसरी ओर नगर निगम की कार्रवाई भी बदस्तूर जारी रहेगी। अगर इस प्रकार की पहल की जा रही है तब वह निश्चित रुप से स्वागत योग्य है। अब यह शहर के प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह इन सभी बातों पर ध्यान दे और अपने आसपास के क्षेत्र को मच्छरों से मुक्त रखे।
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