प्रदेश के सबसे बड़े शहर इंदौर की हालत यह है कि यहां मिलावटखोरों पर लगाम लगाने के लिए प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधियों तक किसी को चिंता नहीं है। खुलेआम मिलावटी खाद्य पदार्थ बिक रहे हैं यह सभी को पता है लेकिन जिन्हें कार्रवाई करना है वे तो हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। पता नहीं कौन सी मजबूरी है? ताजा मामला दूध की जांच का है। हाल ही में खाद्य एवं औषधि विभाग ने दूध के सेंपल लेने के लिए एक दिन मात्र कुछ घंटों तक अभियान चलाया। इस दौरान केवल 18 सेंपल लिए और जांच के लिए लैब में भिजवा दिए। इस कार्रवाई को इस तरह प्रचारित किया गया जैसे बहुत बड़ा अभियान चलाया गया हो जबकि वास्तविकता यह है कि लंबे समय बाद दूध के सेंपल लिए गए हैं। शहर में हर दिन लाखों लीटर दूध का उपयोग होता है। अक्टूबर में केमिकल से बनाए गए दूध का मामला सामने आने के बाद भी अधिकारी खामोश बैठे रहे क्योंकि जिस व्यक्ति का नाम सामने आ रहा था वह एक बड़े नेता से जुड़ा हुआ था। उसके पकड़े जाने के बाद भी विभाग ने शहर में दूध को नहीं जांचा। नवंबर पूरा बीत गया और आधा दिसंबर बीतने पर कुछ घंटों तक कार्रवाई कर अधिकारी और उनके मातहत अपने आॅफिस में जा बैठे। लाखों की आबादी वाले शहर की आवश्यकता के अनुरुप दूध की आपूर्ति कहां-कहां से हो रही है और किस स्तर का दूध, मावा, पनीर, दही, मिठाई शहर में बिक रही है इसकी जांच कौन करेगा? खैर, जांच नहीं करने के भी कई फायदे हैं। संभागीय मुख्यालय होने के बावजूद जब यहां यह स्थिति है तो संभाग के जिलों में क्या हाल होंगे? मिलावटी पदार्थोें के सेवन से बिगड़ रहे लोगों के स्वास्थ्य की चिंता आखिर कौन करेगा?
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