ये अपना शहर है और शहर को हम सभी प्रेम करते हैं। राजवाड़ा को जिस तरह से हम सभी अपने पुराने वैभव के साथ देखना चाहते हैं उसके बीच अतिक्रमण एक समस्या बनकर उभरा है। हमें यह सोचना होगा कि अगर हम ही अपने पुरातात्विक महत्व के भवनों के बारे में सोचेंगे नहीं तो और कोई कैसे सोचेगा। राजवाड़ा के पीछे के हिस्से में जिस प्रकार से अतिक्रमण हुआ और यहां तक कि राजवाड़ा के पीछे दीवार से सटी हुई दुकानों को बनाने की अनुमति नगर निगम के माध्यम से ही दी गई तब हमारी इंदौरियत कहां गई थी? क्या नक्शा पास करने वाले अधिकारियों और उससे संबंधित अन्य लोगों से पूछा नहीं जाना चाहिए? इतना ही नहीं अब भविष्य में इस प्रकार की व्यवस्था होना चाहिए कि नगर निगम जो 17 करोड़ रुपए खर्च कर रहा है उसका रखरखाव सही तरीके से हो। वरना फिर अगले 15 वर्षों में अतिक्रमण से घिरे राजवाड़ा के लिए फिर कोई विदेशी कंपनी को बुलाना पड़ेगा। बात केवल राजवाड़े की भी नहीं है बल्कि आम सड़कों की भी है कोई भी सड़क 60 फीट की होती है और दोनों ओर से अतिक्रमण होते-होते वह 40 फीट क्यों रह जाती है? अतिक्रमण करते समय किसी का ध्यान क्यों नहीं जाता और जाता है तब उसकी क्यों अनदेखी होती है? इन प्रश्नों के जवाब संबंधित अधिकारियों से लेने चाहिए कि आपने अपनी जिम्मेदारी सही तरीके से क्यों नहीं निभाई? क्या कारण थे कि आपने अतिक्रमण होने दिया? अतिक्रमण होने के बाद हटाना आसान है पर अतिक्रमण होने नहीं देना कठिन कार्य है और उसी संस्कृति की ओर अब नगर निगम को बढ़ना चाहिए वरना इस तरह करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद अगर हमें अपना राजवाड़ा आज से पंद्रह वर्ष बाद पुन: अतिक्रमण की गिरफ्त में मिला तो क्या फायदा।
Comments (2 posted)
Post your comment