खजुराहो। लोकपाल विधेयक के लिए कभी दिल्ली सहित पूरे देश में आंदोलन की अलख जगाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे केंद्र सरकार से नाराज हैं। उनका कहना है कि केंद्र सरकार ने लोकपाल विधेयक को कमजोर कर दिया है। अन्ना ने कहा कि सरकारें तब तक बात नहीं सुनतीं जब तक उन्हें यह भय नहीं लगता कि इस विरोध के चलते सरकार गिर सकती है। इसलिए अब जरूरी है कि सरकार के खिलाफ एकजुट होकर आंदोलन चलाया जाए क्योंकि जब तक नाक नहीं दबाई जाएगी, तब तक मुंह नहीं खुलेगा।
अन्ना हजारे पिछली संप्रग सरकार के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से खुश नहीं थे और अब मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी वे खुश नहीं हैं। खजुराहो में दो दिनी राष्ट्रीय जल सम्मेलन में शामिल होने आए अन्ना ने साफ शब्दों में कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने उस लोकपाल विधेयक को कमजोर कर दिया है, जिसे पूर्व की यूपीए सरकार के दौरान पारित किया गया था। मनमोहन सिंह के समय कानून बन गया था, उसके बाद नरेंद्र मोदी ने संसद में 27 जुलाई 2016 को संशोधन विधेयक के जरिए यह किया कि जितने भी अफसर हैं, उनकी पत्नी, बेटे-बेटी आदि को हर साल अपनी संपत्ति का ब्यौरा नहीं देना होगा। जबकि कानून के अनुसार यह ब्यौरा देना आवश्यक था।
अन्ना ने कहा कि लोकसभा में एक दिन में संशोधन विधेयक बिना चर्चा के पारित हो गया, फिर उसे राज्यसभा में 28 जुलाई को पेश किया गया। 29 जुलाई को संशोधन विधेयक राष्ट्रपति को भेजा गया, जहां से हस्ताक्षर हो गया। जो कानून पांच साल में नहीं बन पाया, उसे तीन दिन में कमजोर कर दिया गया।
अन्ना ने कहा कि उद्योग में जो सामान तैयार होता है, उसकी लागत मूल्य देखे बिना ही दाम की पर्ची चिपका दी जाती है। जबकि किसानों का जितना खर्च होता है, उतना भी दाम नहीं मिलता। किसान को दिए जाने वाले कर्ज पर चक्रवृद्धि ब्याज लगाया जाता है। कई बार तो ब्याज की दर 24 प्रतिशत तक पहुंच जाती है। 1950 का कानून है कि किसानों पर चक्रवृद्धि ब्याज नहीं लगा सकते, मगर लग रहा है। अन्ना ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा है कि किसानों से जो ब्याज साहूकार नहीं ले सकते, वह ब्याज बैंक वसूल रहे हैं। बैंक नियमन अधिनियम का पालन नहीं हो रहा है, इसे भारतीय रिजर्व बैंक को देखना चाहिए। यदि आरबीआई इस और ध्यान नहीं दे रही है तो सरकार किर्सिलए है। उन्होंने मांग की कि 60 वर्ष की आयु पार कर चुके किसानों को 5 हजार रुपए प्रतिमाह पेंशन दी जाए।
अन्ना ने कहा कि उद्योगपतियों का हजारों करोड़ रु. का कर्ज माफ कर दिया गया मगर किसानों का कर्ज माफ करने के लिए सरकार तैयार नहीं है। किसानों का कर्ज मुश्किल से 60 से 70 हजार करोड़ रुपए होगा। सरकारें तब तक बात नहीं सुनती हैं, जब तक उन्हें यह डर नहीं लगने लगता कि उनकी सरकार इस विरोध के चलते गिर सकती है। इसलिए जरूरी है कि सरकार के खिलाफ एकजुट होकर आंदोलन चलाया जाए। जब तक नाक नहीं दबाई जाएगी, तब तक मुंह नहीं खुलेगा।
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