प्र्रदेश सरकार क्यों नहीं देती अनुदान?

इंदौर। प्रदेश में कला-संस्कृति को बढ़ावा देने की बातें राज्य सरकार खूब करती है पर असलियत यह है कि प्रदेश के कलाकार संघर्ष करते हैं अपनी सरकार के विरुद्ध क्योंकि उन्हे पूछने वाला कोई नहीं है। अपने हुनर को दुनिया के सामने दिखाने की इच्छा प्रत्येक कलाकार की होती है। देश के विभिन्न राज्यों में कलाकारों को प्रोत्साहन देने का काम खूब होता है पर मध्यप्रदेश के कलाकार ऐसे हैं जिन्हें भोपाल में जाकर जोर लगाना पड़ता है ऐसे लोगों से संपर्क करना पड़ता है जिन्हें कार्यक्रम दिलवाने में महारात हासिल होती है। राज्य सरकार तमाम योजनाएं और पुरस्कार घोषित कर दे पर राजधानी के कलाकारों को जो तरजीह मिलती है वह किसी को नहीं मिलती। 
दरअसल राज्य सरकार की सूची में कला-संस्कृति कहीं पर भी नहीं है। इसे अतिरिक्त खर्च माना जाता है जिसका परिणाम यह हुआ कि प्रदेश की कला-संस्कृति को देश-विदेश में जो मान मिलना चाहिए था वह नहीं मिला। प्रदेश सरकार के इस दोष पर किसी की नजर नहीं गई है पर यह सत्य है कि प्रदेश सरकार ने गत दस वर्षों में प्रदेश की कला-संस्कृति की ओर ध्यान ही नहीं दिया है। प्रदेश के कलाकार दूसरे प्रदेशों की ओर पलायन कर रहे हैं खासतौर पर महाराष्ट्र की ओर क्योंकि वहां पर सरकार कलाकारों और कला-संस्कृति से जुड़ी संस्थाओं को पोषण करती है और उन्हें सहायता भी देती है।
प्रत्येक नाट्य प्रस्तुति पर 15 हजार का अनुदान
महाराष्ट्र सरकार मान्यता प्राप्त नाट्य दलों को पंद्रह हजार रुपए प्रति प्रस्तुति के रुप में अनुदान देती है। इतना ही नहीं महाराष्ट्र सरकार कलाकार कोटे के अंतर्गत फ्लैट से लेकर अन्य सुविधाएं भी देती है। सुविधाएं मिलती हैं तब निश्चित रुप से कलाकार भी अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन करता है और राज्य को प्रसिद्धि भी दिलाता है। 
काफी सहायता हो जाती है
मान्यता प्राप्त रंगकर्मियों के दलों को अगर प्रत्येक प्रस्तुति के 15 हजार रुपए मिलते हैं तो निश्चित रुप से एक नाट्य दल का छोटा-मोटा खर्च तो निकल ही जाता है। नाट्य दल को प्रस्तुति देने के लिए अलग-अलग तरह के खर्च रहते हैं जिसमें सेट लगाने से लेकर ध्वनि, प्रकाश व्यवस्था, मेकअप से लेकर कई अन्य खर्च भी शामिल हैं। शहर में शौकिया नाट्य कलाकारों की कोई कमी नहीं है और कई नाट्य दल ऐसे हैं जो वर्षों से कार्य कर रहे हैं। ये सभी दल अपने खर्च पर नाटक करते हैं या फिर कभी किसी संस्थान ने रंगकर्म करने के लिए कुछ पैसे दे दिए या कोई प्रायोजक मिल जाए। अक्सर ये सभी आपस में पैसे मिलाकर ही रंगकर्म करते हैं।
हमसें प्रमाण पत्र ले जाते हैं
शहर में गत 25 वर्षों से मराठी नाटकों का आयोजन करने वाली सानंद संस्था के मानद सचिव जयंत भिसे ने बताया कि महाराष्ट्र से प्रदेश में आने वाले प्रत्येक नाट्य दल सानंद संस्था से नाट्य प्रस्तुति का प्रमाण पत्र जरुर ले जाता है। यह प्रमाण पत्र महाराष्ट्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय में लगता है जिससे उन्हें प्रति प्रस्तुति 15 हजार रुपए की सहायता राशि भी प्राप्त होती है। महाराष्ट्र सरकार केवल नाटकों को ही नहीं बल्कि अन्य कलाओं को भी सहायता लगातार देती रहती है। 
प्रदेश सरकार पीछे क्यों ?
कला-संस्कृति के नाम पर प्रदेश सरकार ने जो मूल काम करना चाहिए था कि कलाकार को मजबूत बनाया जाए उसकी अपेक्षा सरकार संस्थाओं को मजबूत बनाने में जुट गई। नतीजा यह हुआ कि संस्थाएं भी आगे नहीं बढ़ पाईं और न ही कलाकारों को कुछ मिल पाया।
क्या कर रहा है आनंद विभाग
प्रदेश सरकार ने आनंद विभाग बना जरुर दिया है परंतु जब तक कोई एजेंडा ही नहीं होगा तब तक आनंद विभाग क्या करेगा? आनंद विभाग में गीत-संगीत क्यों नहीं जोड़ते? प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों में वार्षिक उत्सव क्यों नहीं मनाया जाता और वार्षिक उत्सव के दौरान जो भी गीत-संगीत के आयोजन हों उसकी जिम्मेदारी उस क्षेत्र की मान्यता प्राप्त संस्थान को दी जाए और सरकार इसके लिए मानदेय भी दे सकती है। आनंद विभाग के माध्यम से ही कलाकारों को आगे लाने या उन्हें अन्य राज्यों में प्रस्तुतियां देने के लिए योजना बनाई जा सकती है।
प्रदेश में कहने को ढेर सारे पुरस्कार सरकार बांटती है पर प्रदेश में रहने वाले कलाकारों के लिए सरकार ने किसी भी तरह की अच्छी पहल नहीं की हंै। प्रदेश सरकार को महाराष्ट्र सरकार से इस बारे में सीख जरुर लेना चाहिए। 

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