अधिकांश लोग पैसा सबकुछ नहीं पर बहुत कुछ है कहने वाले है, परंतु क्या कभी सोचा है कि अमीर और बहुत अमीर लोग पैसा प्राप्त करने के बाद संन्यासी हो जाते है या वे ये कह देते है कि भाई बस अब बहुत हो चुका अब मुझे पैसा नहीं चाहिए। ऐसा क्यंों नहीं होता? जबकि, गरीब व्यक्ति कितना भी गरीब होता जाए उसे फर्क नहीं पड़ता थोड़े और बहुत गरीब में ज्यादा अंतर नहीं होता। अंतर आता है तो केवल खाने में! थोड़े गरीब को दो वक्त का खाना मिल जाता है, जबकि ज्यादा गरीब को एक बार के खाने में दो बार का पेट भरने की आदत हो जाती है। पढ़ाई लिखाई से कोई मतलब नहीं बस मां अन्न्पूर्णा की साधना में जीवन निकल जाता है।
टीवी चैनलों पर बहुत सारे बाबा लोग बड़ी-बड़ी पोथियाँे पढ़कर जीवन तत्व को समझाते हैं। उन्हें समझने वाले लोग भी ढेर सारे रहते है जो कि कभी कभी बाबाओं के साथ आनंद में मग्न होकर नाचने लगते है। क्योंकि, वे जिस आध्यात्मिक रस का पान करना चाहते है वह उन्हें मिल जाता है। वहीं गरीब भी आपको नाचते हुए मिलेगा, पर अच्छा खाना मिलने पर वह भी दोनो समय! वह नाचेगा, क्योंकि मां अन्न्पूर्णा ने जीवन रस उसे भी दिया है। वह नाचेगा, क्योंकि पेट भर खाना मिलेगा और बच्चों को भी खाना खिला पाएगा। आध्यात्मिक प्यास और गरीब की भूख में सीधा सा रिश्ता है जीवन रस का। गरीब को कभी आध्यात्मिक संत्संगों में भजन कीर्तन करते नहीं पा सकते। वह बेचारा अपनी मजदूरी करते हुए मिलेगा, क्योंकि उसे शाम को जीवन रस (खाना) लेना है और अगर नहीं मिला तो भूखे ही सोना है। वहीं भगवान के प्रति आसक्ति के मामले में गरीब और अमीर में जमीन-आसामान का फर्क है। गरीब भूखे रहने पर भी यही सोचता है कि भाग्य में नहीं है और भगवान से भाग्य बदलने के लिए कहता है और इसके लिए कर्म करने के लिए तैयार रहता है और अच्छी मजदूरी मिलने के बाद वह भगवान की कृपा मानता है। जबकि अमीर व्यक्ति जरा-जरा से काम में भगवान से दोस्ती करता है और तोड़ देता है, वह तो अपने सभी अच्छे बुरे धंधों में भगवान को शामिल कर लेता है भले ही वह कालाबाजारी का क्यों न हो।
अमीर भगवान से नाराज होने का भी माद्दा रखता है और प्रसन्न् होने पर भगवान को खुश अपने तरीके से करता है। भगवान को वह अपने मन से ही अपने साथ मान लेता है। दरअसल, जीवन के तत्व का मर्म बड़ा सीधा है अपने कर्म पथ पर बिना लोभ लालच के बढ़ते चलो। जरुरी नहीं की आप दिन भर में दो घंटा भगवान के सामने बैठ कर चंदन घिसें या मूर्तियों को नहलाएँ धुलाए। जीवन तत्व यह कहता है कि जीवन भगवान का दिया है उसका समुचित प्रयोग करो और गरीबों की मदद करो, बुजुर्गो का सम्मान करो और अपने कर्म पथ पर बढ़ते जाओ और इसके बाद भगवान को याद कर लो। ईश्वरीय सत्ता अपना काम करते रहती है और उसका ध्यान आपके कर्मो पर ही है।
ध्यान से देखा जाए तो ईश्वरे आपको दुनिया में क्यों लाया है? इस पर भी थोड़ा गौर करें तब सबकुछ आसान हो जाएगा। अगर ईश्वर को अपने आपको पुजवाना ही है तब वह आपको पृथ्वी पर जन्म क्यों लेने देता? पहले ही पृथ्वी पर चापलूसों की क्या कमी है? दरअसल, आप हम सभी कर्मबंॅधन में बँधे है और इन्हीं अच्छे बुरे कर्मो के आधार पर हमारा भाग्य भी निर्भर करता है। भाग्य की बात है तो इसे लेकर अमीर भी रोता है और गरीब को रोने का समय नहीं है। कुल मिलाकर हम सभी एक ऐसी दौड़ लगा रहे है जिसमें हम यह सोच नहीं पा रहे है कि आखिर यह दौड़ हम क्यों दौड़ रहे हैं? ये दौड़ हमें कहां ले जाएगी? इस दौड़ को थोड़े समय तक विश्राम देकर केवल दौड़ के बारे में सोचने से ही जीवन तत्व की ओर आप खींचे चले आएँगे।
(अनुराग तागड़े)
टीवी चैनलों पर बहुत सारे बाबा लोग बड़ी-बड़ी पोथियाँे पढ़कर जीवन तत्व को समझाते हैं। उन्हें समझने वाले लोग भी ढेर सारे रहते है जो कि कभी कभी बाबाओं के साथ आनंद में मग्न होकर नाचने लगते है। क्योंकि, वे जिस आध्यात्मिक रस का पान करना चाहते है वह उन्हें मिल जाता है। वहीं गरीब भी आपको नाचते हुए मिलेगा, पर अच्छा खाना मिलने पर वह भी दोनो समय! वह नाचेगा, क्योंकि मां अन्न्पूर्णा ने जीवन रस उसे भी दिया है। वह नाचेगा, क्योंकि पेट भर खाना मिलेगा और बच्चों को भी खाना खिला पाएगा। आध्यात्मिक प्यास और गरीब की भूख में सीधा सा रिश्ता है जीवन रस का। गरीब को कभी आध्यात्मिक संत्संगों में भजन कीर्तन करते नहीं पा सकते। वह बेचारा अपनी मजदूरी करते हुए मिलेगा, क्योंकि उसे शाम को जीवन रस (खाना) लेना है और अगर नहीं मिला तो भूखे ही सोना है। वहीं भगवान के प्रति आसक्ति के मामले में गरीब और अमीर में जमीन-आसामान का फर्क है। गरीब भूखे रहने पर भी यही सोचता है कि भाग्य में नहीं है और भगवान से भाग्य बदलने के लिए कहता है और इसके लिए कर्म करने के लिए तैयार रहता है और अच्छी मजदूरी मिलने के बाद वह भगवान की कृपा मानता है। जबकि अमीर व्यक्ति जरा-जरा से काम में भगवान से दोस्ती करता है और तोड़ देता है, वह तो अपने सभी अच्छे बुरे धंधों में भगवान को शामिल कर लेता है भले ही वह कालाबाजारी का क्यों न हो।
अमीर भगवान से नाराज होने का भी माद्दा रखता है और प्रसन्न् होने पर भगवान को खुश अपने तरीके से करता है। भगवान को वह अपने मन से ही अपने साथ मान लेता है। दरअसल, जीवन के तत्व का मर्म बड़ा सीधा है अपने कर्म पथ पर बिना लोभ लालच के बढ़ते चलो। जरुरी नहीं की आप दिन भर में दो घंटा भगवान के सामने बैठ कर चंदन घिसें या मूर्तियों को नहलाएँ धुलाए। जीवन तत्व यह कहता है कि जीवन भगवान का दिया है उसका समुचित प्रयोग करो और गरीबों की मदद करो, बुजुर्गो का सम्मान करो और अपने कर्म पथ पर बढ़ते जाओ और इसके बाद भगवान को याद कर लो। ईश्वरीय सत्ता अपना काम करते रहती है और उसका ध्यान आपके कर्मो पर ही है।
ध्यान से देखा जाए तो ईश्वरे आपको दुनिया में क्यों लाया है? इस पर भी थोड़ा गौर करें तब सबकुछ आसान हो जाएगा। अगर ईश्वर को अपने आपको पुजवाना ही है तब वह आपको पृथ्वी पर जन्म क्यों लेने देता? पहले ही पृथ्वी पर चापलूसों की क्या कमी है? दरअसल, आप हम सभी कर्मबंॅधन में बँधे है और इन्हीं अच्छे बुरे कर्मो के आधार पर हमारा भाग्य भी निर्भर करता है। भाग्य की बात है तो इसे लेकर अमीर भी रोता है और गरीब को रोने का समय नहीं है। कुल मिलाकर हम सभी एक ऐसी दौड़ लगा रहे है जिसमें हम यह सोच नहीं पा रहे है कि आखिर यह दौड़ हम क्यों दौड़ रहे हैं? ये दौड़ हमें कहां ले जाएगी? इस दौड़ को थोड़े समय तक विश्राम देकर केवल दौड़ के बारे में सोचने से ही जीवन तत्व की ओर आप खींचे चले आएँगे।
(अनुराग तागड़े)
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